Tere Ishq me ho jaau Fannah - 10 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 10

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 10

"दादी का ड्रामा"

भव्य ड्राइंग रूम—मिलन का नाटक

और तभी वहां दानिश कि माँ त्रिशा कि फ्रेंड सोनिया पोद्दार की फ्रेमली [  हज बेड  (देव पोद्दार) और बेटी ( रिटा पोद्दार) ] आ जाते हैं जिन्हें देख त्रिशा खुशी से फुले नहीं समा रही थी | यहां दादी उन्हें ही देख रही थी |

(त्रिशा सोनिया को उत्साह से गले लगाती है। सोनिया भी हंसते हुए उसे बांहों में भर लेती है। दादी पास खड़ी हैं, लेकिन उनकी आँखों में संदेह की परछाईं है। वे धीरे से नौकरानी की ओर मुड़ती हैं और व्यंग्य भरे स्वर में फुसफुसाती हैं।)

दादी (हल्के कटाक्ष के साथ, नौकरानी से धीरे से):

"देखो तो ज़रा! ऐसे गले मिल रही है जैसे जन्मों-जन्मों की सच्ची दोस्त हो... एक नंबर की दिखावा!"

(नौकरानी दबी आवाज़ में हंस पड़ती है, लेकिन उसकी हंसी दादी के तीखे घूरने पर अचानक रुक जाती है।)

नौकरानी की हंसी, दादी की नाराज़गी

(नौकरानी अभी भी हल्की मुस्कान दबाए खड़ी है, लेकिन दादी अब अपनी भौंहें चढ़ा चुकी हैं। उनकी आँखों में गुस्से की चिंगारी चमकती है।)

दादी (झुंझलाते हुए):

"तू क्या दांत दिखा रही है? पंखा चला, अचानक गर्मी लग रही है!"

(नौकरानी घबराकर तुरंत टेबल पर रखा रिमोट उठाती है और पंखा ऑन कर देती है। हवा धीरे-धीरे चलने लगती है, लेकिन अगले ही पल माहौल बदल जाता है।)

 हवा का झोंका और हलचल

(पंखे की तेज़ हवा सोनिया की स्कर्ट को उड़ाने लगती है। वह अचानक असहज हो जाती है और जल्दी से स्कर्ट संभालने की कोशिश करती है। देव, जो पास खड़ा था, हैरानी से यह देखता है। त्रिशा तुरंत दादी की ओर घूरकर देखती है, लेकिन दादी अपने चेहरे पर मासूमियत ओढ़े मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं!)

(देव झट से आगे बढ़कर सोनिया की स्कर्ट संभालने लगता है, जिससे माहौल और अजीब हो जाता है। आसपास खड़े लोग इधर-उधर देखने लगते हैं, और त्रिशा गुस्से में नौकरानी को घूरती है, मानो यह सब उसी की गलती हो!)

 पंखा बंद, सबकी राहत

(नौकरानी हड़बड़ी में रिमोट से पंखा बंद कर देती है। तेज हवा रुक जाती है, और सभी राहत की सांस लेते हैं। सोनिया अभी भी असहज महसूस कर रही है, जबकि देव हल्का परेशान नजर आ रहा है।)

(दादी मजे से यह नजारा देख रही होती हैं। अगले ही पल, वे अचानक झपटकर नौकरानी के हाथ से रिमोट छीन लेती हैं!)

दादी (शरारती अंदाज में):

"मुझे दे! मैं पंखा चलाती हूँ... बहुत गर्मी लग रही है!"

(सोनिया, देव और त्रिशा की आँखें डर से फैल जाती हैं!)

त्रिशा की समझदारी

(त्रिशा स्थिति को संभालने की कोशिश में तेजी से सोनिया और देव को पकड़कर कमरे की ओर ले जाने लगती है। दादी अब भी शरारती मुस्कान के साथ रिमोट को मज़े से उंगलियों में घुमा रही हैं।)

त्रिशा (जल्दी से, दबे गुस्से में):

"चलो, कमरे में बैठते हैं... यहाँ का मौसम ठीक नहीं है!"

(त्रिशा लगभग सोनिया और देव को घसीटते हुए ले जाती है, लेकिन जैसे ही वे दरवाजे की ओर बढ़ते हैं, दादी फिर से रिमोट दबाकर पंखा चालू कर देती हैं!)

दादी (मुस्कराकर, खुद से बड़बड़ाती हुई):

"यहाँ का मौसम ही नहीं, तेरा दिमाग भी ठीक नहीं है!"

 अंतिम शरारत

(त्रिशा गुस्से में दादी की ओर देखती है, लेकिन कुछ कह नहीं पाती। वह जल्दी से सोनिया और देव को अपने कमरे में ले जाती है। दादी मजे से हवा खाते हुए मुस्कुरा रही हैं।)

(नौकरानी झेंपकर पास खड़ी होती है, और पूरा माहौल हल्के-फुल्के हास्य से भर जाता है। दादी अब भी अपनी शरारती चालाकी पर खुश होती हैं, और नौकरानी समझ नहीं पाती कि वह हंसे या चुप रहे!)

– त्रिशा का कमरा

कमरा भारी सन्नाटे में डूबा था, लेकिन हवा में एक अजीब सी बेचैनी घुली हुई थी। महंगे झूमर की रोशनी सोने की दीवारों पर पड़ रही थी, लेकिन इस समय यहाँ मौजूद लोगों के मन में चल रहे तूफान के सामने यह चमक फीकी लग रही थी।

त्रिशा खिड़की के पास खड़ी थी, बाहर  हवेली के बगीचे को देखती हुई। उसकी आँखों में बेचैनी थी, और उसके होंठ भिंचे हुए थे। हल्की ठंडी हवा पर्दों को हिला रही थी, लेकिन त्रिशा की भावनाएँ उससे भी ज्यादा उत्तेजित थीं।

पीछे खड़ी सोनिया ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। त्रिशा को हल्की झुरझुरी हुई, लेकिन उसने खुद को संभाला।

"दानिश तुम्हारा बेटा नहीं है... वो सोतेला है," सोनिया ने नपे-तुले शब्दों में कहा, उसकी आवाज़ में हमेशा की तरह एक विषैली मिठास थी।

त्रिशा ने धीरे-धीरे आँखें बंद कर लीं और एक लंबी साँस ली। फिर वह मुड़ी और सोनिया की आँखों में गहराई से देखा।

"ये मुझे हमेशा से मालूम है कि मैं दानिश की सौतेली माँ हूँ, लेकिन तुम ये सब इस वक्त क्यों कह रही हो?" उसकी आवाज़ सख्त थी, लेकिन चेहरे पर संयम झलक रहा था।

सोनिया हल्की सी मुस्कुराई और थोड़ा करीब आ गई।

"क्योंकि अब तुम्हें अपने खुद के बेटे के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।" उसने धीरे से कहा, लेकिन उसके शब्दों में एक आग थी। "ज़रा सोचो, जब तक तुम्हारा बेटा  दानिश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम नहीं करेगा, तब तक दानिश उसे दबाकर रखेगा। तुम्हारा बेटा हमेशा उसकी छाया में रहेगा।"

त्रिशा की आँखों में एक चमक आई। वह अब पूरी तरह सोनिया की बातों पर ध्यान दे रही थी।

"मैं जानती हूँ कि मुझे क्या करना है," त्रिशा ने आत्मविश्वास से कहा। "इतनी बेवकूफ नहीं हूँ कि अरबों की ये दौलत दानिश के हाथ में यूँ ही जाने दूँ। मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगी।"

उसकी आवाज़ में अब क्रोध था। वह आगे बढ़ी और कमरे के बीचों-बीच खड़े देव की ओर देखी।

"दानिश क्या गलत कर रहा है? उसने अपने दम पर यह सब पाया है, लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि हम सब उसके आगे हाथ फैलाएँ?" त्रिशा की आवाज़ कड़वी हो गई थी। "हम उसके लिए बस नौकर बनकर रह जाएँ? नहीं, ये हरगिज़ नहीं होगा!"

देव, जो अब तक चुपचाप खड़ा था, थोड़ा आगे बढ़ा। उसकी आँखों में चिंता झलक रही थी।

"लेकिन क्या दानिश तुम्हें कुछ करने देगा?" देव ने धीमे लेकिन गंभीर लहजे में कहा। "तुम जानती हो, वह बहुत तेज है। उसके कान हर जगह हैं। वह हर चीज़ सुन लेता है, हर चाल समझ जाता है। अगर उसने भाँप लिया कि तुम उसके खिलाफ कुछ करने जा रही हो, तो वह पहले ही तुम्हें मात दे देगा।"

त्रिशा की उंगलियाँ मुट्ठी में बदल गईं।

"तो फिर मुझे और भी चालाक बनना होगा," उसने धीरे से कहा, लेकिन उसके शब्दों में एक साजिश की झलक थी। "अगर दानिश तेज है, तो मैं उससे भी तेज बनूँगी। और जब समय सही होगा... तब देखना, कौन किस पर भारी पड़ता है।"

कमरे में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया। सोनिया और देव एक-दूसरे को देखते रहे, और फिर सोनिया हल्की मुस्कान के साथ बोली—

"यही सोच चाहिए, त्रिशा। यही सोच..."

कमरे में जलती रोशनी के बावजूद माहौल में अंधकार सा महसूस हो रहा था। और इस अंधकार में एक नई साजिश जन्म ले रही थी...