वरुण के जीवन में अब भी एक अनसुलझी पहेली बाकी थी—काली किताब भले ही शांत हो गई थी, लेकिन वह पूरी तरह विलुप्त नहीं हुई थी। हवेली के रहस्यों ने भले ही अपना कुछ भार हल्का कर दिया था, लेकिन वरुण के मन में अभी भी एक सवाल था: **आखिरी बलिदान क्या था?** आत्मा ने जो संकेत दिया था, उसका सही अर्थ क्या था?
कुछ दिनों तक वरुण सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश करता रहा, लेकिन रात में जब भी वह सोने जाता, उसे अजीब सपने आते। कभी उसे किताब के पन्नों पर जलते हुए अक्षर दिखते, कभी हवेली के दरवाजे पर खड़ी कोई छाया उसे पुकारती। एक रात, जब वह आधी नींद में था, अचानक उसके कमरे की खिड़की खुल गई और ठंडी हवा अंदर बहने लगी। उसे लगा, कोई अदृश्य शक्ति उसे फिर से हवेली की ओर बुला रही थी।
उसने बिना देर किए अपना टॉर्च उठाया और हवेली की ओर बढ़ चला। अंधेरे में डूबी हवेली अब भी रहस्यमयी और डरावनी लग रही थी। लेकिन इस बार, उसके अंदर एक अलग सा आत्मविश्वास था। जैसे ही उसने हवेली का मुख्य दरवाजा खोला, एक जानी-पहचानी फुसफुसाहट हवा में गूँजी।
"तुमने मेरा आधा श्राप हटा दिया है... पर मुक्ति अब भी अधूरी है..."
यह वही आत्मा थी। लेकिन इस बार, उसकी आवाज़ में पहले जैसी पीड़ा नहीं थी—बल्कि एक अजीब सी गहराई थी। वरुण ने आगे बढ़कर पूछा, "**आखिरी बलिदान क्या है?**"
आत्मा ने धीरे से कहा, "**तुम्हें काली किताब का अंतिम पृष्ठ खोलना होगा... और इसे हमेशा के लिए समाप्त करना होगा। लेकिन याद रखना, यह आसान नहीं होगा।**"
वरुण ने झिझकते हुए किताब खोली। पन्ने एक के बाद एक पलटते गए, जब तक कि वह अंतिम पृष्ठ तक नहीं पहुँचा। यह पृष्ठ बाकी सभी पृष्ठों से अलग था—यह पूरी तरह काले रंग का था, मानो उसमें स्याही नहीं, बल्कि अंधकार भरा हो।
जैसे ही वरुण ने इसे छुआ, पूरी हवेली अचानक जोर से हिलने लगी। दीवारों पर लटकी पुरानी तस्वीरें नीचे गिर गईं, छत से धूल झड़ने लगी। हवेली के हर कोने से काले धुएँ की लहरें उठने लगीं। आत्मा की आवाज़ फिर आई:
"अब या तो यह किताब तुम्हें हमेशा के लिए निगल जाएगी, या फिर तुम इसे नष्ट कर दोगे।"
वरुण ने बिना समय गँवाए अपने पास रखी मोमबत्ती जलाई और उस काले पृष्ठ पर टपका दी। आग की छोटी-सी लौ अचानक नीली हो गई और किताब के पन्नों पर फैलने लगी। हवेली में काले धुएँ का तूफान उठ खड़ा हुआ, लेकिन वरुण ने हार नहीं मानी। उसने मंत्रों का उच्चारण जारी रखा, और धीरे-धीरे किताब की आग तेज़ होती गई।
एक भयंकर चीख हवेली में गूँजी। आत्मा की काली परछाई हवा में उठी और फिर एक चमकदार रोशनी में बदलकर धीरे-धीरे विलीन हो गई। हवेली अब पूरी तरह शांत थी।
काली किताब जलकर राख हो चुकी थी। वरुण ने गहरी सांस ली। उसने महसूस किया कि अब हवेली में कोई डरावनी उपस्थिति नहीं थी। आत्मा अब मुक्त हो चुकी थी।
सुबह जब गाँव वालों को यह पता चला, तो वे वरुण की हिम्मत की सराहना करने लगे। हवेली अब भी खड़ी थी, लेकिन अब वहाँ कोई डरावनी कहानी नहीं थी। वरुण को महसूस हुआ कि उसने केवल एक आत्मा को नहीं, बल्कि खुद को भी मुक्त किया था—डर, भ्रम और अतीत के अंधेरे से।
अब उसके सपने शांत थे, हवेली शांत थी, और सबसे बड़ी बात—**उसकी आत्मा भी शांत थी।**