कुछ महीनों तक सब कुछ सामान्य रहा। वरुण ने हवेली को पीछे छोड़ दिया और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश की। लेकिन कुछ चीजें इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं।
एक रात, जब वरुण अपनी स्टडी में बैठा किताब पढ़ रहा था, उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। खिड़की से बाहर झाँका, तो उसे दूर जंगल की ओर हल्की-हल्की नीली रोशनी टिमटिमाती दिखी। वह झटके से उठ खड़ा हुआ। **ऐसी ही रोशनी उस दिन हवेली में भी दिखी थी, जब उसने आत्मा को मुक्त किया था।**
क्या इसका मतलब था कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ?
अगली सुबह, वह गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, बाबा रुद्रनाथ के पास गया, जिन्होंने काली किताब के बारे में पहली बार उसे बताया था।
बाबा रुद्रनाथ ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "**तूने आत्मा को मुक्त किया, लेकिन क्या तूने कभी सोचा कि जिस किताब ने उसे कैद किया था, उसकी शक्ति कहाँ गई?**"
वरुण चौंक गया। सच में, उसने कभी इस बारे में नहीं सोचा था। किताब जल चुकी थी, लेकिन उसकी शक्ति...
बाबा ने आगे कहा, "**काली किताब सिर्फ एक साधारण श्राप नहीं थी। वह सदियों पुरानी एक प्राचीन शक्ति थी, जिसे सही हाथों में जाना था। तूने उसे नष्ट किया, लेकिन अब वह शक्ति कहीं और समा गई है। और अगर तूने नीली रोशनी देखी है, तो इसका मतलब है कि यह शक्ति अब भी जागृत है।**"
वरुण को समझ नहीं आया कि यह शक्ति अब कहाँ गई होगी। लेकिन बाबा की बातों ने उसे बेचैन कर दिया। अगर किताब की शक्ति नष्ट नहीं हुई, तो इसका मतलब था कि वह किसी और रूप में अब भी मौजूद थी।
उसने उसी रात जंगल जाने का फैसला किया। टॉर्च और कुछ ज़रूरी चीजें लेकर वह चुपचाप गाँव से बाहर निकल पड़ा। जंगल में घुसते ही उसे एक अजीब सी सनसनाहट महसूस हुई। वातावरण में अजीब तरह की ऊर्जा बह रही थी। वह उसी दिशा में बढ़ा, जहाँ से नीली रोशनी आई थी।
कुछ दूर जाने पर उसे एक पुराना, टूटा-फूटा मंदिर दिखाई दिया। मंदिर के दरवाजे पर रहस्यमयी प्रतीक उकेरे हुए थे, जो उसे काली किताब के पन्नों पर बने चिह्नों की याद दिला रहे थे। अंदर घुसते ही उसने देखा—**मंदिर के बीचों-बीच पत्थर पर वही नीली रोशनी चमक रही थी।**
वरुण ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और जैसे ही उसने उस पत्थर को छुआ, एक झटके से पूरी जगह रोशनी से भर गई। अचानक, हवा में वही फुसफुसाहट गूँज उठी, जो उसने पहले हवेली में सुनी थी।
"**वरुण... तूने मुझे मुक्त किया, लेकिन यह शक्ति अब तुझे चुन चुकी है।**"
वरुण पीछे हटने लगा, लेकिन उसके पैरों में मानो जड़ें जम गई हों। वह हिल भी नहीं पा रहा था।
"**अब तू इस शक्ति का उत्तराधिकारी है।**"
अगले ही पल, नीली रोशनी उसके चारों ओर घूमने लगी और अचानक उसके अंदर समा गई। एक तेज़ दर्द उसकी नसों में दौड़ गया, और वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
जब उसकी आँखें खुलीं, तो उसने महसूस किया कि अब सब कुछ बदल चुका था। हवाओं की हलचल, पेड़ों की फुसफुसाहट... हर चीज़ अब पहले से अलग महसूस हो रही थी।
**काली किताब तो नष्ट हो चुकी थी... लेकिन उसकी शक्ति अब वरुण के अंदर समा चुकी थी।**