Kaali Kitaab - 9 in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | काली किताब - 9

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काली किताब - 9

कुछ हफ्तों बाद, वरुण की ज़िंदगी फिर से सामान्य दिखने लगी थी। लेकिन भीतर ही भीतर, एक अजीब सा खालीपन उसके दिल में घर कर चुका था। जब रात को वह सोने जाता, तब अक्सर उसे उन जले हुए पन्नों की महक, हवेली की टूटी दीवारों से आती ठंडी हवा, और परछाइयों की सरसराहट महसूस होती थी।  

एक शाम, जब वह अपनी बालकनी में बैठा चाय पी रहा था, तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। वरुण ने चौंककर घड़ी देखी—रात के ग्यारह बजे कोई आने की उम्मीद नहीं थी।  

सावधानी से उसने दरवाज़ा खोला। बाहर कोई नहीं था। बस नीचे एक छोटा-सा लिफाफा पड़ा था। वरुण ने उसे उठाया। लिफाफे के ऊपर बस एक शब्द लिखा था—**"यात्रा"**।  

हाथ काँपते हुए उसने लिफाफा खोला। अंदर एक पुराना, मटमैला नक्शा था, जिस पर अजीब सी भाषा में कुछ लिखा था। कुछ कोने जले हुए थे, लेकिन बीच में एक चिन्ह बहुत स्पष्ट था—हवेली का ही प्रतीक।  

वरुण का दिल धड़क उठा। क्या वह सब खत्म नहीं हुआ था? या फिर... क्या यह सिर्फ एक शुरुआत थी?  

उसने नक्शे को ध्यान से देखा। उस पर एक लोकेशन का संकेत था—शहर से कुछ मील दूर एक पुराना कब्रिस्तान।  

हवा में फिर वही जानी-पहचानी फुसफुसाहट घुल गई—मानो कोई फिर से उसे बुला रहा हो।  

वरुण ने नक्शा मोड़ा, गहरी साँस ली, और खुद से कहा,  
**"अगर जवाब चाहिए, तो मुझे फिर से यात्रा शुरू करनी होगी।"**  

रात की गहराइयों में, वरुण एक बार फिर एक अनदेखी दुनिया की ओर कदम बढ़ा रहा था—इस बार और भी खतरनाक रहस्यों, खोई हुई सच्चाइयों और पुराने कर्ज़ों के बीच।  

वरुण ने अपना जैकेट उठाया, मोबाइल जेब में डाला और चुपचाप घर से बाहर निकल गया। सड़कें सुनसान थीं, सिर्फ स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी और हवा में अजीब-सी ठंडक थी।  

नक्शा देखकर वह रास्ता तय कर रहा था। शहर से बाहर निकलते ही माहौल बदल गया—चारों तरफ वीरानी थी, सूखे पेड़, टूटी दीवारें और धूल भरी हवाएँ। कुछ दूर जाकर उसे वह पुराना कब्रिस्तान दिखा—जैसा नक्शे में चिन्हित था।  

कब्रिस्तान लोहे के एक पुराने, जंग खाए गेट से घिरा था। गेट पर जाले लटक रहे थे, और हवा के झोंके से वह हल्के-हल्के चरमरा रहा था। वरुण ने गेट को धकेला—एक भयानक चरमराहट के साथ वह खुल गया।  

अंदर घुसते ही एक ठंडी, गीली मिट्टी की गंध ने उसे घेर लिया। चारों तरफ टूटी-फूटी कब्रें थीं, कुछ पर नाम तक मिट चुके थे। हर तरफ सन्नाटा था, लेकिन वरुण को लग रहा था जैसे कोई उसे देख रहा हो।  

नक्शे पर एक निशान एक विशेष कब्र की ओर इशारा कर रहा था। वह धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ा। अचानक, हवा तेज़ हो गई। सूखे पत्ते हवा में घूमने लगे। पेड़ों की शाखाएँ अजीब तरह से चरमराने लगीं, जैसे वे किसी अदृश्य संगीत पर थिरक रही हों।  

वह कब्र बाकी सभी से अलग थी। एक काली संगमरमर की कब्र, जिस पर कोई नाम नहीं लिखा था—सिर्फ एक अजीब सा प्रतीक खुदा हुआ था, वही जो हवेली की किताब पर था।  

जैसे ही वरुण ने कब्र के पास कदम रखा, ज़मीन काँपने लगी। कब्र के ऊपर का पत्थर खुद-ब-खुद खिसकने लगा, और अंदर से एक सीढ़ी दिखाई दी—जो नीचे, गहरे अंधेरे में जा रही थी।  

वरुण का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। वह जानता था कि नीचे जो भी है, वह सामान्य नहीं होगा। लेकिन उसके पास अब पीछे हटने का रास्ता नहीं था।  

उसने जेब से एक टॉर्च निकाली, उसे जलाया और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। अंधेरा इतना घना था कि टॉर्च की रोशनी भी बस कुछ फीट तक ही जा पा रही थी।  

जैसे-जैसे वह नीचे उतरता गया, हवा और ठंडी होती गई। दीवारों पर अजीब-अजीब चित्र उकेरे हुए थे—काले साए, जलती हुई किताबें, और आँखें... हर तरफ बस आँखें।  

नीचे एक बड़ा कमरा था। कमरे के बीचों-बीच एक पत्थर की मेज़ थी, और उस पर वही जली हुई किताब रखी थी, जो वरुण ने हवेली में देखी थी।  

लेकिन इस बार, किताब के आसपास काले घने धुएँ की आकृतियाँ मँडरा रही थीं। जैसे ही वरुण ने किताब की ओर कदम बढ़ाया, उन आकृतियों ने एक मानव-आकृति का रूप ले लिया—लंबा, काला, बिना चेहरा वाला।  

"तू लौट आया है," एक गहरी, भारी आवाज़ गूँजी।  
"इस बार तेरा भाग्य तेरे साथ नहीं होगा।"  

वरुण ने हिम्मत जुटाई और जवाब दिया,  
"मैं अपने अतीत को जानने और इसे खत्म करने आया हूँ।"  

परछाई हँसी, एक ऐसी हँसी जिससे दीवारें भी थर्रा उठीं।  
"जानने की कीमत चुकानी पड़ेगी... अपनी आत्मा से।"  

कमरे की दीवारों से सैकड़ों हाथ निकलने लगे, जो वरुण को पकड़ने के लिए बढ़ रहे थे।  

लेकिन वरुण तैयार था। इस बार उसके पास सिर्फ डर नहीं था—बल्कि एक नया मंत्र भी था, जो उसने पिछले सपनों में अधूरा देखा था।  

उसने गहरी साँस ली, किताब के ऊपर हाथ फैलाया और वह मंत्र बोलना शुरू किया...