Kaali Kitaab - 11 in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | काली किताब - 11

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काली किताब - 11

वरुण की साँसें थम सी गईं।
उस राक्षसी पुरुष की आँखों में एक ऐसा खिंचाव था, जैसे वो समय के आर-पार देख सकता हो।

**"तुम मुझे जानते हो?"** वरुण ने धीमे स्वर में पूछा, लेकिन उसकी उंगलियाँ किताब के पन्नों पर कस गईं।

वो प्राणी उठा—उसकी लंबाई इंसानों से कहीं अधिक थी। काले लिबास में लिपटा उसका शरीर आधा धुएँ सा लग रहा था, जैसे वो स्थिर नहीं, बल्कि लहराता हो।

**"जानता हूँ?"**
उसकी हँसी गूँजी और दीवारों से टकरा कर गूंज उठी।
**"वरुण, तुम मेरे उत्तर नहीं—मेरे परिणाम हो।"**

वरुण ने झटके से किताब खोली।
पन्नों पर लाल अक्षरों में एक मंत्र उभरा:
**"अग्नि-चक्र मंत्र—रक्षा और आग का आवाहन।"**

**"अगर मैं परिणाम हूँ,"** वरुण बोला, **"तो मैं इस कहानी को अपनी तरह खत्म भी कर सकता हूँ।"**

उस प्राणी ने अपनी उँगली हवा में घुमाई और देखते ही देखते चार छायाएँ उसके पीछे प्रकट हो गईं—
चार योद्धा, जिनके चेहरे नकाब से ढँके थे और आँखों में खून टपक रहा था।

**"ये हैं ‘काल-प्रहरी’। ये वही हैं जिन्होंने किताब को मेरे लिए ढूँढा था। अब वो तुम्हें रोकेंगे।"**

वरुण ने मंत्र पढ़ा—
**"अग्नि-चक्र नमः अं!"**

उसके चारों ओर अग्नि का घेरा बन गया।
पहला काल-प्रहरी झपटा।
वरुण ने किताब को आगे बढ़ाकर रक्षा मंत्र के शब्दों को दोहराया—एक सुनहरी ढाल सामने उभरी और प्रहार वहीं रुक गया।

दूसरा काल-प्रहरी हवा में गायब हो गया—और अचानक वरुण की पीठ पर वार हुआ।
पर जार्विस की आवाज़ गूंजी:
**"पीछे से वार—ऊर्जा शील्ड सक्रिय!"**

प्रहार रुक गया, लेकिन वरुण की साँसें तेज हो गईं।

**"तुम्हारे जैसे कई आए... किताब लेकर। मगर कोई जीवित नहीं गया..."**
वो प्राणी बोला।

वरुण ने उसकी ओर देखा और एक बात महसूस की—**ये सिर्फ लड़ाई नहीं, ये परीक्षा है।**

**"कौन हो तुम?"**
वरुण चीखा।

उसने जवाब दिया—
**"मैं हूँ ‘काल-राज’। समय का स्वामी, और तुम्हारे पूर्वजों का दोष..."**

वरुण की आँखें चौड़ी हो गईं।
**"मेरे... पूर्वजों का?"**

**"हाँ, वरुण। वो जो पहली बार समय से खेलने लगे थे। जिनकी वजह से यह शाप शुरू हुआ था। और अब, तुम्हें इसका अंत करना होगा..."**

अचानक काल-राज के माथे पर एक तीसरी आँख खुली—
और वरुण के सामने समय का एक टुकड़ा फट पड़ा।

एक दृश्य उभरा—
एक युद्ध… एक राजा… और एक सैनिक, जिसकी शक्ल वरुण जैसी थी…

**"ये… मैं हूँ?"**

काल-राज बोला:
**"तुम्हारे रक्त में वह शक्ति है जो समय को मोड़ सकती है। पर उस शक्ति की कीमत है... तुम्हारी आत्मा।"**

अब वरुण के सामने दो रास्ते थे—

1. *किताब के अगले पन्ने खोलकर शक्ति को पूरी तरह जागृत करना*,
2. *या सब छोड़कर वापस लौट जाना—हमेशा के लिए।*




वरुण ने एक पल को अपनी आँखें बंद कीं।
अंदर से कोई चीख रहा था—**"पीछे हट जाओ, ये रास्ता सिर्फ विनाश की ओर जाता है!"**
पर उसकी आत्मा जवाब दे रही थी—**"अगर मैं नहीं लड़ा, तो कौन लड़ेगा?"**

उसने आँखें खोलीं और बिना हिचक के किताब का अगला पन्ना पलट दिया।
लाल रोशनी उसके चारों ओर फैलने लगी।
जार्विस की चेतावनी आई:
**"वॉर्निंग: यह पन्ना आपकी सोल एनर्जी को स्थायी रूप से बदल देगा। एक बार चुना गया पथ, वापस नहीं मुड़ता।"**

वरुण ने दाँत भींचे और कहा—**"कर दो सक्रिय।"**

किताब की ऊर्जा भभक कर उठी।
उसके शरीर पर रहस्यमयी चिन्ह उभरने लगे—आग, समय, और सर्प के आकार के टैटू।
उसके बाल हवा में लहराए, आँखों में सुनहरी चमक उभरी।

**"अग्नि-संहिता: समय-चक्र मंत्र सक्रिय!"**
उसने ज़ोर से चिल्लाया।

चारों काल-प्रहरी एक साथ झपटे—
लेकिन इस बार वरुण हवा में लहराया, और उसके हाथों से एक अग्नि-चक्र निकला जो समय के धागों से बना था।
हर प्रहार उनके अस्तित्व को धीमा कर देता था।

**"ये क्या है?"** काल-राज गरजा।

**"ये है मेरे पूर्वजों की विरासत,"** वरुण बोला,
**"और मैं हूँ उसका अंतिम उत्तर।"**

एक-एक करके काल-प्रहरी समय में फँस गए—
उनकी गति रुकी, शरीर बिखरने लगे।

अब केवल काल-राज बचा था।

**"बहुत हुआ नाटक..."**
काल-राज ने अपनी तीसरी आँख से सीधा हमला किया।
समय की एक चपटी तरंग वरुण की ओर दौड़ी।

**जार्विस: "टाइम वेव डिटेक्टेड—बचाव असंभव!"**

पर वरुण मुस्कुराया।
उसने अपनी हथेली में सोल-फ्लेम को केंद्रित किया और बोला—
**"तू समय है... पर मैं परिवर्तन!"**

उसने सीधे समय-तरंग को काट दिया।
एक विस्फोट हुआ—पूरा मंदिर हिल गया।

धुएँ के बादल छँटे।
वरुण अकेला खड़ा था, किताब के साथ।
काल-राज गायब था। सिर्फ उसकी आवाज़ गूँजी—
**"तुमने मुझे हराया नहीं... बस अभी के लिए रोका है। अगली बार जब समय टूटेगा—मैं लौटूँगा..."**

वरुण ने गहरी साँस ली।
किताब के आखिरी पन्ने पर लिखा था: