घर वालो का इंट्रो
सुबह की पहली किरण जब मेहुल के कमरे की खिड़की से अंदर आई, तो उसने करवट बदली और अलार्म बंद कर दिया। घर में हलचल शुरू हो चुकी थी। किचन से उसकी मम्मा के बर्तन रखने की आवाज़ आ रही थी और पापा अखबार पढ़ रहे थे।
"मेहुल, बेटा! उठ गया?" मम्मा ने आवाज़ दी।
"हाँ मम्मा, बस अभी उठा।" वह बिस्तर से उठा और खिड़की से बाहर देखा। शहर की सुबह एक अलग एहसास लिए होती है, और आज का दिन तो वैसे भी खास था। उसे रेनी से Silent Shore पर मिलना था।
वह फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर आया, जहाँ उसका छोटा भाई पहले से बैठा था।
"क्या प्लान है आज का, भैया?" छोटे भाई ने शरारती अंदाज़ में पूछा।
"कुछ खास नहीं, बस थोड़ा घूमने जा रहा हूँ," मेहुल ने जवाब दिया और हल्का मुस्कुराया।
पापा ने अखबार से नजर हटाई और कहा, "आजकल तुम्हारा घूमना ज़्यादा नहीं हो गया?"
"अरे, जवान लड़का है, घूमेगा नहीं तो और क्या करेगा," मम्मा ने बीच में कहा और उसकी प्लेट में और पराठे रख दिए। मेहुल हल्का मुस्कुराया और नाश्ता खत्म कर के जल्दी से तैयार होने चला गया।
दूसरी ओर, रेनी के घर में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। उसकी मम्मा किचन में व्यस्त थीं और पापा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। रेनी अपनी छोटी बहन के साथ कमरे में बैठी थी।
"दीदी, तुम रोज़ इतनी जल्दी तैयार क्यों हो जाती हो? कोई खास मिलने वाला है क्या?" उसकी बहन ने चिढ़ाते हुए पूछा।
"ऐसा कुछ नहीं है, बस बाहर जा रही हूँ," रेनी ने मुस्कुराते हुए कहा।
मम्मा किचन से बाहर आईं और बोलीं, "अच्छा सुनो, जाते वक्त पापा को बाहर छोड़ देना, वो रास्ते में ही उतर जाएँगे।"
"जी मम्मा," रेनी ने कहा और अपनी सिस्टर को देखते हुए हल्की मुस्कान दी।
थोड़ी देर बाद, वह अपनी गाड़ी में बैठी और पापा को ऑफिस के रास्ते में छोड़ते हुए Silent Shore की ओर बढ़ गई। दूसरी ओर, मेहुल भी बाइक लेकर उसी दिशा में निकल पड़ा।
कुछ देर बाद, Silent Shore की शांति और हल्की समुद्री हवा के बीच दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े थे।
"तुम हमेशा टाइम पर कैसे आ जाती हो?" मेहुल ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"क्योंकि मैं तुम्हारी तरह लेज़ी नहीं हूँ," रेनी ने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया।
"हा में तो हु लेजी, क्या करू अब में हु ही ऐसा तो, कोई नी वैसे घर में सब कैसे है." मेहुल ने कहा।
"सब अच्छे हैं, मम्मा ने तुम्हारे बारे में पूछा था।" रेनी ने हल्के अंदाज में कहा।
"ओह, तो क्या जवाब दिया तुमने?" मेहुल ने थोड़ा चुटकी लेते हुए पूछा।
"बस इतना कि एक दोस्त है जो हर बार मिलने के लिए बेसब्र रहता है," रेनी ने हँसते हुए कहा।
"अच्छा! अब मैं बस दोस्त रह गया हूँ?" मेहुल ने थोड़ा इतराते हुए पूछा।
"फिलहाल तो यही, लेकिन आगे क्या होगा, ये तो वक़्त ही बताएगा," रेनी ने शरारती अंदाज में जवाब दिया।
दोनों कुछ देर तक समुद्र की लहरों को देखते रहे। यहाँ आने से हमेशा उन्हें सुकून मिलता था, जैसे ये जगह सिर्फ उनके लिए बनी हो। सूरज की किरणें लहरों पर चमक रही थीं, और हल्की हवा उनके चेहरे को छू रही थी।
"चलो, आज थोड़ा लंबा टहलते हैं, बात भी हो जाएगी और मूड भी फ्रेश रहेगा," मेहुल ने कहा।
"बिल्कुल! वैसे भी यहाँ से लौटने का मन नहीं करता," रेनी ने हामी भरी।
दोनों धीरे-धीरे समुद्र किनारे टहलने लगे, अपने बीच की नज़दीकियों और इस पल के महत्व को महसूस करते हुए।
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