KHOYE HUE HUM - 1 in Hindi Love Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | खोए हुए हम - 1

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खोए हुए हम - 1

एपिसोड 1: अजनबी रास्तों के हमसफ़र

शाम ढल चुकी थी। सड़क किनारे लगी स्ट्रीट लाइट्स अपनी पीली रोशनी बिखेर रही थीं, और ठंडी हवा हल्के-हल्के चल रही थी।

मेहुल: "हेलो मिस, आप यहाँ अकेले क्या कर रही हो? आपको ऐसे यहाँ अकेले नहीं घूमना चाहिए। आपका कोई रिश्तेदार है क्या?"

रेनी: (हल्की मुस्कान के साथ) "ओह, हेलो! आप अजनबियों से ऐसे ही बातें करने लगते हैं, मेहुल? वैसे, हाँ, मैं यहाँ अकेली ही घूम रही हूँ… कभी-कभी अकेले रहना अच्छा लगता है।"

मेहुल ने देखा कि उसकी आँखों में सुकून था, लेकिन शायद कोई अनकहा दर्द भी छिपा था। हवा में हल्की ठंडक थी, और स्ट्रीट लाइट की रोशनी उसकी मासूमियत को और निखार रही थी।

मेहुल: "हाँ, मुझे पता है कि आप यहाँ अपने किसी दर्द की वजह से खड़ी हो, लेकिन अब शाम हो गई है। प्लीज़, अपने घर जाइए।"

रेनी: (गहरी साँस लेते हुए) "तुम बहुत ध्यान रखते हो, मेहुल… लेकिन हर दर्द का कोई न कोई वक़्त होता है, जब उसे अकेले ही महसूस करना पड़ता है। यह जगह मुझे सुकून देती है… घर जाकर भी शायद मैं यही सोचती रहूँगी।"

रेनी पास की बेंच पर बैठ गई। उसकी उंगलियाँ ठंडी हवा को महसूस कर रही थीं। उसकी आँखें कहीं दूर अंधेरे में खोई हुई थीं।

रेनी: "तुम क्यों परेशान हो रहे हो? हम तो अजनबी हैं, है ना? या फिर… तुम हमेशा हर किसी की इतनी फिक्र करते हो?"

मेहुल: "नहीं, नहीं, मैं तुम्हें यहाँ अकेले नहीं छोड़ सकता। चलो, तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूँ। तुम्हारे घर का पता बताओ।"

रेनी: (हँसते हुए) "तुम तो ज़िद्दी हो, मेहुल। लेकिन क्या होगा अगर मैं कहूँ कि मेरे लिए 'घर' अब सिर्फ एक जगह भर रह गया है, जहाँ जाना ज़रूरी तो है, लेकिन मन कभी वहाँ टिकता नहीं?"

उसने एक पल के लिए मेहुल की आँखों में देखा, मानो यह जानना चाहती हो कि वह सच में उसकी परवाह करता है या बस औपचारिकता निभा रहा है।

रेनी: "अगर तुम इतना ही ज़िद कर रहे हो तो… मेरा घर पास ही है, लेकिन क्या तुम सच में मुझे वहाँ तक छोड़ने आना चाहते हो? लोग क्या सोचेंगे, एक अजनबी लड़की को रात में घर छोड़ने जाओगे तो?"

मेहुल: "हाँ, मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ने आऊँगा। लोगों की चिंता मत करो। उनका काम ही है बातें बनाना।"

रेनी हल्की मुस्कान के साथ उठी और धीरे-धीरे सड़क पर चलने लगी। उनकी चाल धीमी थी, मानो वे इस सफर को और लंबा करना चाहते हों।

रेनी: "मेहुल, अगर तुम्हारी ज़िंदगी में कभी कोई खुशी नहीं आई, तो क्या तुमने कभी उसे तलाशा भी? या फिर बस आदत बना ली इस खालीपन की?"

मेहुल: "हाँ, कोशिश तो की थी, यही सोचकर कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। लेकिन कहते हैं ना, जो किस्मत में होता है, वही होता है… बाकी सब सपना होता है। अब पता नहीं और कितना वक्त इन अंधेरों और तन्हाइयों में गुजारना पड़ेगा, तुम्हारी तरह।"

रेनी: (हल्की हँसी के साथ) "तो फिर, मेहुल… क्या तुम्हें लगता है कि हम बस अंधेरे और तन्हाइयों के लिए बने हैं? कि हमें इसी में घुटते रहना चाहिए?"

सड़क के किनारे रेनी का घर दिखने लगा था, लेकिन उसकी चाल अब और भी धीमी हो गई थी, जैसे वह इस सफर को खत्म नहीं करना चाहती हो।

मेहुल: "हाँ, तुम सही कह रही हो। हमें इस अंधेरे में साथ चलना चाहिए, जब तक रोशनी न मिल जाए। लेकिन फिलहाल मुझे लगता है कि तुम्हें अपनी यह चलने की तेज गति थोड़ी कम करनी चाहिए… क्योंकि तुम्हारा घर अब दिख रहा है।"

रेनी: (हँसते हुए) "अच्छा? तो अब तुम्हें मेरा घर दिख गया, इसलिए तुम चाह रहे हो कि मैं धीरे चलूँ? या फिर बस यह सफर लंबा करना चाहते हो?"

उसकी मुस्कान में कुछ अलग था, जैसे बहुत समय बाद उसने किसी के साथ कुछ महसूस किया हो। लेकिन तभी मेहुल की नजर उसके हाथ पर पड़ी। हल्की चोट लगी थी, जिससे खून सूख चुका था।

मेहुल: "यह हाथ को क्या हुआ? यह चोट कहाँ से लगी? यार, तुम ना लापरवाह भी हो! हद है, रुको… अभी हॉस्पिटल चलते हैं और पट्टी करवाते हैं। चलो।"

रेनी: (थोड़ा चौंकते हुए) "ओह… यह? कुछ खास नहीं, बस यूँ ही कहीं टकरा गई थी… आदत सी हो गई है अब इन छोटी-मोटी चोटों की।"

उसने हल्के से अपना हाथ खींचना चाहा, लेकिन मेहुल ने उसकी उंगलियाँ और मजबूती से पकड़ लीं। उसकी आँखों में हल्की झिझक थी, लेकिन कहीं न कहीं एक राहत भी कि कोई उसकी परवाह कर रहा था।

रेनी: "मेहुल, सच में ज़रूरत नहीं है… ये ठीक हो जाएगा। मुझे दर्द की आदत है।"

मेहुल: "नहीं, अब और बहाने नहीं। चलो, हॉस्पिटल चलते हैं।"

रेनी कुछ देर तक मेहुल की आँखों में देखती रही, फिर धीरे से सिर झुका लिया।

रेनी: "ठीक है, तुम जीत गए… चलो, हॉस्पिटल चलते हैं। लेकिन वादा करो कि इसे ज्यादा बड़ा मुद्दा नहीं बनाओगे। मुझे नफरत है जब लोग मेरे दर्द को ज़रूरत से ज्यादा तवज्जो देते हैं…"

(क्या मेहुल रेनी के दर्द को समझ पाएगा? क्या यह सफर अजनबीपन से आगे बढ़ेगा? जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले एपिसोड का…!)