KHOYE HUE HUM - 5 in Hindi Love Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | खोए हुए हम - 5

Featured Books
  • ഡെയ്ഞ്ചർ പോയിന്റ് - 15

    ️ കർണ്ണിഹാരയെന്ന ആ സുഗന്ധ പുഷ്പം തന്നിൽ നിന്നും മാഞ്ഞു പോയിര...

  • One Day

    ആമുഖം  "ഒരു ദിവസം നമ്മുടെ ജീവിതം മാറുമെന്ന് ഞാൻ എപ്പോഴും വിശ...

  • ONE DAY TO MORE DAY'S

    അമുഖം

    “ഒരു ദിവസം നമ്മുെട ജീവിതത്തിെ ഗതി മാറ്റുെമന്ന് ഞാൻ...

  • ഡെയ്ഞ്ചർ പോയിന്റ് - 14

    ️ കർണ്ണിഹാര ചോദിച്ച ചോദ്യത്തിന് വ്യക്തമായ ഒരു ഉത്തരം കണ്ടെത്...

  • One Day to More Daya

    Abu Adam: ശാന്തമായ വനത്തിനു മീതെ സൂര്യൻ തൻ്റെ ചൂടുള്ള കിരണങ്...

Categories
Share

खोए हुए हम - 5

एपिसोड 1: पहली मुलाकात – Silent Shore

शाम के हल्के सुनहरे रंग में डूबी हुई सड़क। एक तरफ शांत समुद्र, दूसरी तरफ पेड़ों की कतार। हल्की ठंडी हवा बह रही थी, जो हर बीते लम्हे को थोड़ा और धीमा कर रही थी।

मैंने बाइक किनारे रोक दी। ये वही जगह थी, "Silent Shore" – जहाँ शोर भी चुप हो जाता है। मैं अक्सर यहाँ आता हूँ, अकेला। पर आज कुछ अलग था।

मैंने हेलमेट उतारा और आँखें बंद कर लीं। ऐसा लगा जैसे वक़्त थम गया हो। और फिर...

मेहुल: अरे कौन हो तुम और यह क्या कर रही हो? और आप यहाँ बिल्कुल नहीं बैठ सकतीं, क्योंकि यह जगह आपकी नहीं है, किसी और की है। आप प्लीज यहाँ से जाइए। मैं यहाँ अपने चाहने वाले से मिलने आया हूँ।

अनजान लड़की: ओह, सॉरी! मुझे लगा यह एक पब्लिक प्लेस है, और मैं यहाँ थोड़ी देर बैठ सकती हूँ। लेकिन अगर आपको कोई प्रॉब्लम हो रही है, तो मैं चली जाती हूँ।

(वह पलटने ही वाली थी कि अचानक हवा का एक तेज़ झोंका आया। उसकी हल्की गुलाबी ड्रेस हवा में लहराई, और उसके खुले बाल उसके चेहरे पर बिखर गए।)

अनजान लड़की: वैसे, तुम अपने चाहने वाले से मिलने आए हो? लेकिन यहाँ तो कोई नहीं है...

(मैंने उसकी बात सुनी, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। बस समुद्र की ओर देखने लगा। वह शायद समझ गई कि मैं किसी याद में खोया हुआ हूँ।)

अनजान लड़की: कभी-कभी हम जिस चीज़ से भाग रहे होते हैं, वही हमें बार-बार मिल जाती है...

(उसके ये शब्द अजीब थे। जैसे किसी राज़ से भरे हुए हों। मैं उसकी ओर देखने ही वाला था कि तभी वह मुड़कर जाने लगी।)

मेहुल: अरे, ए लड़की! रुको तो, कहाँ जा रही हो? अरे, बात सुनो तो! हाँ, मैं थोड़ा खयालों में खो जरूर चुका हूँ, लेकिन मैं पूरे होश में हूँ।

(लेकिन वह नहीं रुकी। वह तेज़ कदमों से सड़क के दूसरी ओर चली गई।)

(मैंने एक लंबी सांस ली और फिर से समुद्र की ओर देखा। लेकिन दिमाग़ अब शांत नहीं था। उस अनजान लड़की के आखिरी शब्द—"कभी-कभी हम जिस चीज़ से भाग रहे होते हैं, वही हमें बार-बार मिल जाती है..."—अब भी गूंज रहे थे।)

(मन में ख्याल आया कि कौन थी वो? और क्या वो भी किसी तलाश में थी? या फिर ये सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ था?)

मैंने धीरे से बुदबुदाया, "अरे यार, ये लड़की तो चली गई। लेकिन अब रेनी कब आएगी? काफी वक्त हो गया है, और अब मैं कन्फ्यूजन में हूँ कि अब जाऊँ या थोड़ी देर और रुक जाऊँ... उसे मिलने के बाद ही जाऊँ।"

रेनी: अरे ओ मिस्टर! क्या बात है, जाने की बहुत जल्दी लग रही है? मेरा इंतजार नहीं कर सकते क्या?

(मैंने चौंक कर पीछे देखा। रेनी खड़ी थी, वही मुस्कान, वही चमकती आँखें। मैं बस उसे देखता ही रह गया।)

मेहुल: ओह, तो आखिरकार तुम आ ही गई! जानती हो, मैंने सोचा था कि शायद तुम आज भी लेट करोगी।

रेनी: (हंसते हुए) क्या करूँ, कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं। और वैसे भी, तुम्हें इंतज़ार करवाना तो मेरी पुरानी आदत है।

(हम दोनों हंस पड़े। हवा में एक अजीब सी ताजगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा माहौल ही हमारे लिए ठहर गया हो।)

(शाम का समय था, हल्की ठंडी हवा बह रही थी। हम दोनों किनारे की बेंच पर बैठ गए।)

मेहुल: (आसमान की ओर देखते हुए) यह जगह अब भी वैसी ही लगती है, जैसे पहले थी। सुकून भरी, शांत...

रेनी: हाँ, लेकिन अब यहाँ हम दोनों भी हैं, तो शायद अब ये पहले से और भी खास लग रही होगी?

(मैंने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी, लेकिन कुछ अलग भी था। कुछ ऐसा, जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था।)

मेहुल: तुम कैसी हो? काफी दिनों बाद मिल रहे हैं न?

रेनी: (थोड़ा रुककर) मैं ठीक हूँ... बस, ज़िंदगी थोड़ा तेज़ भाग रही है, और मैं उसके पीछे भाग रही हूँ।

मेहुल: (हल्की मुस्कान के साथ) और मैं वही पुराना, जो अभी भी हर चीज़ को धीमे से महसूस करना चाहता है।

(रेनी ने मेरी तरफ देखा, उसकी मुस्कान हल्की पड़ गई। उसने कुछ कहने के लिए होंठ खोले, फिर रुक गई। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहना चाहती है, लेकिन शब्द नहीं मिल रहे।)

(कुछ सेकंड की खामोशी के बाद...)

रेनी: चलो, कहीं घूमने चलते हैं। सिर्फ़ बैठकर बातें करने से कुछ नहीं बदलेगा।

मेहुल: (मुस्कुराते हुए) ठीक है, मैडम। कहाँ चलना चाहोगी?

(रेनी ने समुद्र की ओर इशारा किया।)

रेनी: वहाँ, पानी के किनारे। जैसे पहले जाते थे, वैसे ही।

(मैंने सहमति में सिर हिलाया और हम दोनों धीरे-धीरे समुद्र की ओर बढ़ने लगे।)

(शायद कुछ बातें कहनी रह गई थीं, लेकिन हर चीज़ का एक सही वक़्त होता है, और शायद वो वक़्त अभी नहीं आया था...)

पढ़ना जारी रखे. . .