1. प्रारंभिक स्वरूप परंपरागत मानसिकता में पूजा–पाठ धर्म का आरंभिक और सबसे प्रचलित रूप है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति बाह्य देवताओं या प्रतीकों की आराधना करता है, मंत्रोच्चार और विधि–विधान को ही धर्म समझ लेता है। यह बाल्यकाल की उस सीढ़ी जैसी है, जहाँ शिशु अपने अनुभवों को बाह्य वस्तुओं में खोजता है, पर आत्मिक गहराई का द्वार अभी नहीं खुला होता।
वेदान्त 2.0 - भाग 1
अध्याय १.पूजा–पाठ : धर्म की प्रारंभिक अवस्था Vedānta 2.0 © — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲1. प्रारंभिक स्वरूपपरंपरागत मानसिकता में पूजा–पाठ धर्म आरंभिक और सबसे प्रचलित रूप है।यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति बाह्य देवताओं या प्रतीकों की आराधना करता है,मंत्रोच्चार और विधि–विधान को ही धर्म समझ लेता है।यह बाल्यकाल की उस सीढ़ी जैसी है,जहाँ शिशु अपने अनुभवों को बाह्य वस्तुओं में खोजता है,पर आत्मिक गहराई का द्वार अभी नहीं खुला होता।2. बाह्य पूजा–पाठ की सीमाएँजब कोई व्यक्ति पूजा–पाठ को ही धर्म का पूर्ण स्वरूप मान लेता है,और जीवनभर उसी एक सीढ़ी पर ठहरा रहता है,तब उसकी आध्यात्मिक यात्रा रुक जाती है।पूजनीय ...Read More
VEDANAT VIGYAN
विराट शून्य सूत्र — ब्रह्मांड की चेतन उत्पत्ति प्रथम 0 — बड़ा विराट शून्य।उस विराट के भीतर एक बना — सूक्ष्म 0।एक अनंत 0 होता है, लेकिन उसमें एक बिंदु उत्पन्न होता है। वह बिंदु उस अनंत का ब्रह्मांड–केंद्र बन जाता है। जब असीमित अनंत था, और उसने बिंदु बनाया, तब वह अनंत केंद्रित हो गया — यही अनंत का केंद्र है।समझो — एक झील है, एक अनंत समुद्र है, जो बिल्कुल शांत और निष्क्रिय है। लेकिन उस झील या समुद्र में कहीं कोई कंपन होता है — वह कंपन फिर पूरे अनंत में फैलता है। यह ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 3
वेदान्त 2.0 का उद्देश्य और उपयोगिता वेदान्त 2.0 किसी जाति, धर्म, पंथ, सभ्यता या देश का ग्रंथ नहीं है। केवल मानव जाति तक सीमित नहीं — यह चेतना की समग्र यात्रा का साक्षी है। इसका उद्देश्य है — प्रकृति, समाज, धर्म और विज्ञान — इन सभी में व्याप्त विभ्रम और द्वंद्व पर प्रकाश डालना; दिखाना कि ब्रह्मांड में जो कुछ है — धरती, जल, वायु, अग्नि, आकाश — सब जीवित हैं, सब एक विराट देह के अंग हैं। वेदान्त 2.0 सिखाता है कि मानव का परम धर्म है इस जीवित चेतना की रक्षा करना, क्योंकि वही उसका अपना विस्तार ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 2
वेदान्त 2.0 — एकीकृत चेतना का दर्शन वेदान्त 2.0 उस बिंदु से जन्मा है जहाँ वेद, उपनिषद, गीता, शास्त्र, मनोविज्ञान और आधुनिक विज्ञान एक दूसरे से टकराते नहीं — मिलते हैं। यह प्रयास है — संपूर्ण मानव ज्ञान परंपरा को एक चेतन सूत्र में पिरोने का। वेदान्त 2.0 कहता है: सत्य का कोई एक ग्रंथ नहीं, हर ग्रंथ एक ही मौन की अलग भाषा है। यह आधुनिक मनुष्य के लिए वेदान्त का नया दृष्टिकोण है — जहाँ प्रयोगशाला और ध्यानस्थली एक हो जाते हैं, और ‘मैं कौन हूँ’ का प्रश्न वैज्ञानिक भी है और आध्यात्मिक भी। वेदान्त ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 4
वेदांत 2.0 अध्याय 4 — समर्पण का विज्ञान — मृत्यु से मौन तक — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 (© वेदांत 2.0) भूमिकासमर्पण ही सच्ची मृत्यु है। जहाँ तुम झुकते हो, वहीं मरना शुरू होता है—पर वही मरना जीवन का आरंभ भी बनता है। जो भीतर झुकना नहीं जानता, वह कभी मौन को नहीं जान सकता। अहंकार मृत्यु से डरता है, क्योंकि मृत्यु में उसका अस्तित्व नहीं रहता। और जो अहंकार से मुक्त हो गया, वह मौन में प्रवेश कर गया। मृत्यु अंत नहीं है—यह भीतर लौटने का मार्ग है। जहाँ मृत्यु को देखा, वहीं जीवन का रहस्य प्रकट ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 5
वेदांत 2.0 अध्याय — 7 -“धर्म और सिद्धि : जब आत्मा प्रमाण बन गई” — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 --- सूत्र १ “अप्प दीपो भव” और “मौन हार” किसी को पहनाया नहीं जा सकता। जो दिया जाए, वह दीपक नहीं; जो दिखाया जाए, वह मौन नहीं। व्याख्यान: बुद्ध का दीपक भीतर जलना था, पर शिष्य उसे बाहर से जलाने लगे। मौन कोई सिद्धि नहीं — यह तो तब उतरता है जब भीतर की आवाज़ें थक जाती हैं। --- सूत्र २ बौद्ध धर्म, हिन्दू संन्यास ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 6
अध्याय 9— जीवन और ईश्वर की मौलिक यात्रा मनुष्य अनगिनत जन्मों से जीवन के पथ पर चल है — प्रयासों की अंतहीन श्रृंखला में बंधा हुआ। वह भोग, साधन और उपलब्धियों के पीछे भागता रहा, पर जीवन को स्वयं कभी जी नहीं पाया। उसकी साधना भी एक वासना थी — उपासना, प्रार्थना, ध्यान — सब किसी फल की आकांक्षा में रचे उपाय। और जहाँ आकांक्षा है, वहाँ मौलिकता मर जाती है। जीवन की असली मौलिकता जीने में है। जीवन को न साधन बनाना, न साधना; बस उसके सहज स्वभाव में प्रवेश करना ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 7
अध्याय 10 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 स्त्री‑तत्व और धर्म: एक दार्शनिक व्याख्याधर्म का मूल भाव सदैव से ही जीवन उस गहरे अंश में निहित रहा है, जहाँ मनुष्य अपने अस्तित्व की सच्चाई और आत्मा की पुकार को पहचानता है। यह भावना यदि गहरे से देखा जाए, तो धर्म केवल बाहरी नियमों या आडंबर का नाम नहीं, बल्कि उस आंतरिक शक्ति का प्रतीक है जो जीवन के सभी पहलुओं में अनंत ऊर्जा का संचार करती है।**स्त्री‑तत्व का दार्शनिक परिदृश्य**इस संदर्भ में, स्त्री‑तत्व का विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह केवल जैविक या सामाजिक भूमिका का नाम नहीं है, बल्कि ...Read More
वेदान्त 2.0 - भाग 8
अध्याय 11 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 अध्याय 11-मानव जीवन का मूल संतुलन Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲---मनुष्य भटक है —क्योंकि उसने अपने जीवन का केंद्र खो दिया है।जिस मूलाधार में जीवन की जड़ ऊर्जा थी,जिस मणिपुर में शरीर की क्रियाशक्ति थी,और जिस हृदय में प्रेम, संगीत, करुणा और आनंद का उद्गम था —वह सब आज बुद्धि के नियंत्रण में आ गया है।मूलाधार अब केवल जड़ता, काम, उत्तेजना और जनन का केंद्र रह गया है।मणिपुर शरीर की थकान और बीमारियों का भंडार बन गया है।हृदय अब सिर्फ़ भावनाओं की स्मृति है —अतीत की लकीरों और भविष्य के स्वप्नों का ...Read More