भारतीयता का पुनर्जागरण

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भारत की संस्कृति एक अमर धारा है, जो सहस्त्रों वर्षों से मानव जीवन को दिशा देती आई है। यह संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का शाश्वत दर्शन है। इसमें वेदों की वाणी है, उपनिषदों का ज्ञान है, गीता का कर्मयोग है और लोकजीवन की सहजता है। आज जब आधुनिकता की आँधी में मूल्य डगमगा रहे हैं, तब भारतीयता की आत्मा हमें पुनः स्मरण कराती है कि वास्तविक प्रगति केवल विज्ञान और भौतिकता में नहीं, बल्कि संस्कारों और आत्मबोध में निहित है।

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भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 1

भारतीयता का पुनर्जागरण(संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा)भूमिकाभारत की संस्कृति एक अमर धारा है, जो सहस्त्रों वर्षों से मानव को दिशा देती आई है। यह संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का शाश्वत दर्शन है। इसमें वेदों की वाणी है, उपनिषदों का ज्ञान है, गीता का कर्मयोग है और लोकजीवन की सहजता है।आज जब आधुनिकता की आँधी में मूल्य डगमगा रहे हैं, तब भारतीयता की आत्मा हमें पुनः स्मरण कराती है कि वास्तविक प्रगति केवल विज्ञान और भौतिकता में नहीं, बल्कि संस्कारों और आत्मबोध में निहित है।यह पुस्तक पाठकों के सामने भारतीय संस्कृति की जड़ों से लेकर उसके आधुनिक ...Read More

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भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 2

अध्याय – 2भारतीय संस्कृति की स्वर्णिम धरोहर : संस्कार, परिवार और शिक्षाभारतीय संस्कृति को यदि एक आयुवृद्ध वटवृक्ष माना तो उसके गहन मूल संस्कार हैं, उसका मजबूत तना परिवार व्यवस्था है और उसकी छाया में फलते-फूलते पुष्प-फल शिक्षा एवं ज्ञान हैं। यही तीन धरोहरें भारत को सहस्त्रों वर्षों तक सशक्त, संगठित और आध्यात्मिक बनाए रखने की आधारशिला बनीं।संस्कार : जीवन का शुद्धिकरणभारतीय जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ जन्म से मृत्यु तक मानव जीवन को पवित्र और उन्नत बनाने के लिए एक क्रमबद्ध प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इन्हें षोडश संस्कार कहा गया है।संस्कार का अर्थ ...Read More

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भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 3

अध्याय 3पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और भारतीयता का क्षरणइतिहास के पन्नों को पलटने पर यह तथ्य स्पष्ट होता है भारत की संस्कृति इतनी गहरी और सुदृढ़ रही कि आक्रांताओं की तलवारें भी उसे पूरी तरह काट नहीं सकीं। असंख्य आक्रमण और अनगिनत संघर्षों के बावजूद इसकी जड़ें जीवित बनी रहीं। किंतु जब भारत पर पाश्चात्य सभ्यता और औपनिवेशिक मानसिकता का प्रभाव पड़ा, तब धीरे-धीरे हमारी आत्मा पर आघात होने लगे। भारतीय जीवन-दर्शन, जिसकी धुरी संतुलन, संयम और मर्यादा थी, पाश्चात्य संस्कृति की भोगवादी दृष्टि से विचलित हो गया। हमारे संस्कारों के दीपक मंद पड़ने लगे और आज भी यह ...Read More