पंजाबी होते, और अपने घर तथा समाज में पंजाबी बोलते हुए भी, मंजीत एक हिंदी कवि था। क्योंकि आसपास का वातावरण हिंदी भाषियों का था और उसने पढ़ाई भी हिंदी माध्यम से की थी इसलिए उसका हिंदी कवि होना कोई चमत्कार न था। पर एक अहिंदी भाषी का हिंदी कवि होने के नाते उसका विशेष सम्मान था। इसके साथ ही उसका लुक- काली दाढ़ी और काली पगड़ी भी उसे ध्यानाकर्षक बनाती। उसकी टोन, पढ़ने का लहजा भी अन्य कवियों से अधिक आकर्षित करता। और रागिनी के हृदय में भी कविता के अंकुर फूटते थे, सो वह रागिनी को कविता सिखाने और कवि सम्मेलनों का मंच दिलाने के बहाने ही उसके करीब आ रहा था। और यह पिछले दो-तीन बरस से चल रहा था। लेकिन वह अभी तक अपने शहर की कवि गोष्ठियों में ही रागिनी को ले जा सका था।
इश्क़ बेनाम - 1
(1)पंजाबी होते, और अपने घर तथा समाज में पंजाबी बोलते हुए भी, मंजीत एक हिंदी कवि था। क्योंकि आसपास वातावरण हिंदी भाषियों का था और उसने पढ़ाई भी हिंदी माध्यम से की थी इसलिए उसका हिंदी कवि होना कोई चमत्कार न था। पर एक अहिंदी भाषी का हिंदी कवि होने के नाते उसका विशेष सम्मान था। इसके साथ ही उसका लुक- काली दाढ़ी और काली पगड़ी भी उसे ध्यानाकर्षक बनाती। उसकी टोन, पढ़ने का लहजा भी अन्य कवियों से अधिक आकर्षित करता। और रागिनी के हृदय में भी कविता के अंकुर फूटते थे, सो वह रागिनी को कविता सिखाने ...Read More
इश्क़ बेनाम - 2
02 गजरा और गीत मंजीत ने बहुत पहले से ही मंसूबा बाँध रखा था कि वह बसंत पंचमी पर मौका पा सकता है, जब दीना नगर के मेले में होने वाले कवि सम्मेलन के बहाने रागिनी को अपने साथ बाहर ले जाय! जो सपना दो साल से प्रतिदिन पल रहा था और एक प्लान बन रहा था उसे पाने का, वह इसी तरह पूरा हो सकता था...! यह मेला उसके शहर पठानकोट से कोई चालीस-बयालीस किलोमीटर दूर दीना नगर में रावी-तट पर भरता था। मंजीत एक प्रतिष्ठित क्षेत्रीय कवि था इसलिए वह तो इस कवि-सम्मेलन में हर साल जाता ...Read More
इश्क़ बेनाम - 3
03 चौखट भीतर तूफान सुबह की धुंधली रोशनी में रागिनी अपने मन मे आशंकाओं के घटाटोप बादल लिए मरे-मरे से घर की ओर बढ़ चली...। दरवाजा खुला था। देहरी पर कदम रखते ही उसने देखा, मम्मी रसोई में थीं, लेकिन उनका चेहरा गंभीर था। पापा हॉल में अखबार लिए बैठे थे, पर उनकी आँखें अखबार पर कम, दरवाजे की ओर ज्यादा थीं। रमा दीदी, जो पिछले कुछ महीनों से बीमार थीं और बिस्तर पर ही रहती थीं, कमरे से बाहर निकलीं। उनकी नजरें रागिनी पर टिकीं, जैसे कुछ पूछने को बेताब हों। रागिनी ने चप्पलें उतार कर नजरें झुकाए ...Read More
इश्क़ बेनाम - 4
04 जान बची, लाखों पाए रागिनी का औसत कद, और शरीर के अनुपात में परफेक्ट फिगर। काली तरल आँखें, सुर्ख ओठ, आकर्षक नाक, चंदा-सा गोलमटोल गोरा मुखड़ा और उन्नत उभार, जैसे- प्लास्टिक सर्जरी कराई हो! मंजीत की आँखों में छा कर रह गए थे। दिन भर दफ्तर में बैठा-बैठा वह उससे मिलन के मंसूबे बाँधा करता। बुजुर्ग सहकर्मियों से सुन रखा था कि गुदगुदे ओठ और तरल आँखों वाली लेडीज सहवास में अपने साथी को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करने वाली होती हैं। स्वभाव से मिलनसार और दयालु जो अपने रिश्तों में ईमानदारी और वफादारी की कद्र करती हैं। अपने ...Read More
इश्क़ बेनाम - 5
05 नई चुनौतियाँ धीरे-धीरे होली आ गई। और होली बाद रंग पंचमी पर ‘मनमस्त’ जी के यहाँ फाग गोष्ठी जाना नहीं चाहता था मंजीत, क्योंकि इस विषय पर कोई गीत उसने लिखा नहीं था। पर इसी आशा में चला गया कि शायद वह आए और फिर एक बार नजर भर देखूं, उसकी मीठी आवाज सुनूँ! न हो बातचीत, न उंगलियों से उंगलियों की छुअन- कोई बात नहीं, एक-दो दो घंटे का साथ ही मिल जाए, उसी से जी लूँगा! मौका मिला पहले की तरह फिर घर छोड़ने का, तो गली के अँधेरे मोड़ पर हाथ जोड़ माफी माँग लूँगा। ...Read More
इश्क़ बेनाम - 6
06 दुविधा जब रागिनी के मम्मी-पापा, बहन शिखर जी से लौट कर आए तो घर में एक अजीब-सी खामोशी गई। रागिनी और मंजीत उस वक्त हॉल में बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, और बाहर टैक्सी के रुकने की आवाज ने उनकी बातचीत को बीच में ही रोक दिया था। रागिनी का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने मंजीत की ओर देखा, जिसके चेहरे पर हल्की-सी बेचैनी थी, पर वह शांत बना रहा। रागिनी ने उठकर दरवाजा खोला, और रागिनी की माँ, पिताजी और बहन रमा अंदर आ गए। उनके चेहरों पर थकान साफ झलक रही थी, लेकिन ...Read More
इश्क़ बेनाम - 7
07 आपदा में अवसर सहालग लगते ही रमा की शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। घर में एक नई थी, जो पिछले दिनों के तनाव को धीरे-धीरे मिटा रही थी। रागिनी और मंजीत ने अपने रिश्ते को थोड़ा पीछे रखकर परिवार की खुशी को जो प्राथमिकता दी थी उसने माँ-बाप और बहन का दिल जीत लिया था। रागिनी ने अपनी बड़ी बहन के लिए साड़ियाँ चुनने से लेकर मेहमानों की लिस्ट बनाने तक हर काम में हाथ बँटाया। मंजीत भी जब समय मिलता, रागिनी के घर आकर छोटे-मोटे कामों में मदद करता। मैरिज गार्डन, कैटरिंग बुकिंग जैसे बड़े काम ...Read More
इश्क़ बेनाम - 8
08 सच का सामना वो पन्द्रह दिन भी परिवार ने जैसे तैसे काट लिये। रमा जब पुनः आ गई, वही चहल-पहल। माँ अब पहले से अधिक खुश। तब एक शाम पिताजी ने रागिनी से कह मंजीत को बुलवा लिया। हॉल में बैठे माँ और पिताजी के चेहरों पर फिर वही गंभीरता, लेकिन आँखों में एक नरमी भी झलक रही थी। पिताजी ने कहा, ‘मंजीत, तुमने रमा की शादी के लिए जो त्याग किया, उसे हम भूल नहीं सकते। तुमने साबित कर दिया कि तुम सिर्फ रागिनी की नहीं, हमारे पूरे परिवार की भलाई चाहते हो। अब हमें कोई एतराज ...Read More
इश्क़ बेनाम - 9
09 तूफान का आगमन मंजीत के शब्द हॉल में गूँजते रहे: ‘नताशा का मैसेज है। वो अगले हफ्ते वापस रही है।’ उसकी आवाज में एक कंपन था, जैसे वो खुद इस खबर से हिल गया हो। रागिनी की साँसें थम सी गईं। उसने मंजीत की ओर देखा, लेकिन उसकी आँखों में जवाब की जगह सिर्फ असमंजस था। माँ ने तुरंत मौके का फायदा उठाया और कहा, ‘देखा, मैंने कहा था न! अब क्या करोगी, रागिनी? इस आदमी के पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद करोगी?’ रागिनी का गला सूख गया। उसने कुछ कहना चाहा, लेकिन शब्द बाहर नहीं आए। पिताजी ने ...Read More
इश्क़ बेनाम - 10
10 फैसला इतनी रात को वह कोई टेक्सी नहीं लेना चाहती थी, मगर लेना पड़ी क्योंकि जगह दूर थी। पहुँच उसने घण्टी बजाई और दिल धड़धड़ा उठा कि कहीं नताशा से एकाएक सामना न हो जाय! मगर दरवाजा मंजीत ने खोला और वह उसके पीछे अंदर चली आई। फिर डरते-डरते नताशा के कमरे तक भी। पर कमरे के अंदर आकर भी उसने पाया कि नताशा वहाँ नहीं थी। दीवार पर मंजीत के सँग खिंची उसकी फोटो जरूर लगी थी, जिसे वह पहले भी कई बार देख चुकी थी और कइएक दुष्कल्पनाओं में उससे खरीखोटी भी सुन चुकी थी। राहत ...Read More
इश्क़ बेनाम - 11
11 साधना की राह रागिनी का परिवार जैन धर्मावलम्बी था। उसके पिता, प्रकाशचंद, एक आध्यात्मिक पुरुष थे, जो हर और शाम तत्वार्थ सूत्र का स्वाध्याय करते थे। उनकी मेज पर हमेशा यह ग्रंथ और कुछ अन्य जैन साहित्य की पुस्तकें रखी रहतीं। माँ नियमित रूप से पास के जैन मंदिर में पंच परमेष्ठी की पूजा करने और प्रवचन सुनने जाती थीं। बचपन में रागिनी भी माँ के साथ मंदिर जाती थी, लेकिन उसका मन तब किशोरवय की उड़ानों में खोया रहता था। पिता का स्वाध्याय उसे उबाऊ लगता था, और माँ की भक्ति एक रस्म सी। मगर अब, जब ...Read More