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तूफान का आगमन
मंजीत के शब्द हॉल में गूँजते रहे:
‘नताशा का मैसेज है। वो अगले हफ्ते वापस आ रही है।’
उसकी आवाज में एक कंपन था, जैसे वो खुद इस खबर से हिल गया हो। रागिनी की साँसें थम सी गईं। उसने मंजीत की ओर देखा, लेकिन उसकी आँखों में जवाब की जगह सिर्फ असमंजस था। माँ ने तुरंत मौके का फायदा उठाया और कहा, ‘देखा, मैंने कहा था न! अब क्या करोगी, रागिनी? इस आदमी के पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद करोगी?’
रागिनी का गला सूख गया। उसने कुछ कहना चाहा, लेकिन शब्द बाहर नहीं आए। पिताजी ने गंभीर स्वर में कहा, ‘मंजीत, तुम्हें अभी फैसला करना होगा। अगर नताशा वापस आ रही है, तो तुम्हारी क्या योजना है? हम अपनी बेटी को अनिश्चितता में नहीं छोड़ सकते।’
मंजीत ने फोन मेज पर रख, हाथों में अपना सिर थाम लिया। थोड़ी देर बाद बमुश्किल बोला वह, ‘अंकल जी, मुझे नहीं पता था कि वो अचानक वापस आएगी! मैंने उसे कई मैसेज किये, तलाक की बात करने के लिए, लेकिन उसने कभी जवाब नहीं दिया। मुझे लगा था कि वो मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए निकल गई है...’
रमा ने बीच में टोका, ‘लेकिन भैया, अगर वो अब वापस आ रही है, तो इसका मतलब है कि वो कुछ चाहती है। क्या आपको लगता है कि वो इतनी आसानी से तलाक दे देगी?’
मंजीत ने रागिनी की ओर देखा, जैसे उससे कोई सहारा माँग रहा हो। रागिनी ने हिम्मत जुटाकर कहा, ‘मंजीत, मुझे तुम पर भरोसा है। लेकिन माँ और पिताजी सही कह रहे हैं। हमें ये जानना होगा कि नताशा क्या चाहती है। अगर वो तुम्हें वापस चाहती है, तो... तो मैं क्या करूँगी?’ उसकी आवाज में दर्द साफ झलक उठा था।
माँ ने तंज कसा, ‘अब भरोसे से क्या होगा? ये शादीशुदा आदमी है, रागिनी! इसकी पत्नी का हक सबसे पहले है। तुम्हारी जगह कहाँ है इस सब में?’
पिताजी ने माँ को चुप कराया और मंजीत से कहा, ‘देखो बेटा, हम तुम्हें गलत नहीं ठहरा रहे। लेकिन हमें अपनी बेटी की चिंता है। नताशा के आने से पहले तुम्हें उससे बात करनी होगी। साफ करना होगा कि तुम्हारा रिश्ता खत्म हो चुका है। अगर वो तैयार नहीं हुई, तो हम रागिनी को इस रिश्ते में नहीं डाल सकते।’
मंजीत ने सिर हिलाया, ‘अंकल जी, मैं आज ही नताशा से बात करूँगा। वो जिस फ्लाइट से आ रही है, उसका टाइम मैसेज में लिखा है। मैं उसे एयरपोर्ट पर मिलूँगा और सब साफ कर दूँगा।’
रागिनी की आँखों में आँसू छलक आए। उसने धीरे से कहा, ‘मंजीत, मुझे डर लग रहा है। अगर वो तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती तो? मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।’
मंजीत ने उसका हाथ थामा और कहा, ‘रागिनी, तुम मेरी जिंदगी हो। मैं नताशा को समझा दूँगा। वो मेरे लिए अतीत है, और तुम मेरा भविष्य।’
लेकिन माँ को ये सारे वादे खोखले लग रहे थे। वे बदस्तूर गुस्से में बोलीं, ‘अच्छा, तो फिर हम भी देखेंगे कि तुम क्या करते हो...। नताशा जब आएगी, तब सच सामने आ जाएगा।’
...
शाम को मंजीत ने नताशा को मैसेज किया और उससे एयरपोर्ट पर मिलने की बात कही। नताशा का जवाब आया, ‘ठीक है, मिलते हैं। हमें बात करनी है।’ उसका संदेश छोटा था, लेकिन उसमें छुपी अनिश्चितता ने मंजीत को बेचैन कर दिया।
नताशा के आने में अभी तीन दिन थे। लेकिन ये तीन दिन मंजीत और रागिनी के लिए तीन बरस के समान भारी हो गए। अब न तो वह मंजीत के पास जा सकती थी, जाती तो घर वालों को क्या मुँह दिखाती? और न मंजीत उसके पास आ सकता था, क्योंकि वह उसकी मम्मी-पापा का सामना किस मुँह से करता। वे एक दूसरे को फोन भी नहीं कर पा रहे थे कि इस मसले के सिवा और क्या बात करते? और इस विषय पर बात करने में दोनों की ही रूह काँप रही थी। गोया भविष्य अनिश्चित हो गया था, कभी-कभी लगता खत्म ही हो गया। रागिनी के तो सपने कुँवारे ही मर गए। वह तो अब मंजीत के बिना मेंहदी की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, और मंजीत भी उसके बिना जीने की। लेकिन यह मोड़ न आया होता तो दोनों को ही इस प्यार की गहराई का पता न चलता।
बहरहाल, तीन दिन बाद मंजीत एयरपोर्ट के गेट के बाहर खड़ा था। उसकी नजरें हर आने वाले के चेहरे पर टिक रही थीं। तभी एक परिचित चेहरा दिखा...नताशा। काला चश्मा लगाए वो पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरी लग रही थी। काले सूटकेस के साथ वो मंजीत के पास आई और ठंडे लहजे में बोली, ‘हाय, मंजीत। काफी वक्त हो गया।’
मंजीत ने नमस्ते की और कहा, ‘हाँ, नताशा। लेकिन तुम अचानक क्यों आईं? तुमने मेरे मैसेज का जवाब क्यों नहीं दिया?’
नताशा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, ‘मैं यहाँ अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करने आई हूँ। और हाँ, तुम्हारी जिंदगी के बारे में भी मुझे कुछ पता चला है। रागिनी कौन है, मंजीत?’
मंजीत का दिल धड़क उठा। उसने सोचा नहीं था कि नताशा को पता होगा, लेकिन अब साफ था कि वो अँधेरे में नहीं है! उसने हिम्मत जुटाई और कहा, ‘नताशा, हमें बात करनी होगी। चलो, कहीं बैठते हैं।’
नताशा ने सिर हिलाया और कहा, ‘हाँ, बात तो करनी ही होगी। लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा, जितना तुम समझ रहे हो...।’
...
मंजीत और नताशा एयरपोर्ट के एक छोटे से कॉफी शॉप में बैठे। टेबल पर कॉफी के दो मग्गे रखे थे, लेकिन दोनों में से किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं। हवा में तनाव साफ झलक रहा था। मंजीत ने गहरी साँस ली और कहा, ‘नताशा, मैं सीधे बात पर आता हूँ। मैंने तुम्हें कई बार मैसेज किया, तलाक की बात करने के लिए। पर तुमने जवाब नहीं दिया। मुझे लगा था कि तुम भी इस रिश्ते को खत्म करना चाहती हो।’
नताशा ने अपनी आँखें मंजीत पर टिकाईं। उसकी मुस्कान अब गायब हो चुकी थी।
‘मंजीत, तुमने ये मान लिया कि मैं चुप हूँ तो मैंने हार मान ली? मैंने जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि मुझे वक्त चाहिए था। लेकिन अब मैं यहाँ हूँ, और मुझे पता है कि तुम मेरे जाने के बाद रुक नहीं गए। रागिनी कौन है? तुम्हारी नई गर्लफ्रेंड?’
मंजीत ने नजरें झुकाईं, फिर हिम्मत जुटाकर कहा, ‘हाँ, नताशा। रा-रा, रा-गिनी मेरी जिंदगी का हिस्सा है। तुम और मैं... ह-ह-मारा पति-पत्नी का रिश्ता तो बहुत पहले ही खत्म हो चुका था। और उसके बाद तुमने मुझे छोड़कर चले जाना चुना, मैंने भी अपनी जि-जि..जिंदगी आगे बढ़ाई।’
नताशा एक ठंडी हँसी, हँसी, ‘अच्छा, तो ये तुम्हारा बहाना है? मैंने तुम्हें छोड़ा था, तो तुमने किसी और को ढूँढ लिया! लेकिन मंजीत, कानूनी तौर पर हम अभी भी शादीशुदा हैं। तुम ये कैसे भूल गए?’
मंजीत का चेहरा सख्त हो गया, ‘मैं नहीं भूला, नताशा। इसलिए मैं तुमसे तलाक की बात करना चाहता था। लेकिन तुम गायब हो गईं। अब अचानक वापस क्यों आईं? क्या चाहती हो तुम?’
नताशा ने अपने सूटकेस की ओर इशारा किया और कहा, ‘मैं यहाँ स्थायी तौर पर रहने आई हूँ। आइ’ड लाइक टू गिव माय मैरिज वन मोर चान्स।’
सुन कर मंजीत को जैसे बिजली का झटका लग गया। उसने कुछ पल के लिए अपनी साँसें रोक लीं। फिर बोला, ‘नताशा, तुम सीरियस हो...? तुमने मुझे इतने दिन अकेले छोड़ दिया, न कोई कॉल, न कोई मैसेज। और अब तुम कह रही हो कि हम फिर से शुरू करें?’
नताशा ने शांत स्वर में कहा, ‘मंजीत, मैंने गलतियाँ कीं। मैं मानती हूँ कि मैंने तुम्हें ठीक से मैनेज नहीं किया। लेकिन मैंने सोचा कि शायद हम फिर से कोशिश कर सकते हैं। और अगर तुम मुझसे तलाक चाहते हो, तो मुझे कुछ चाहिए होगा। मैं खाली हाथ नहीं जाऊँगी।’
‘क्या मतलब,’ मंजीत ने तंज करते हुए कहा, ‘तुम्हें कोई कमी है? और मेरे पेरेंट्स ने और मैंने तो तुम्हारे मम्मी-पापा से कुछ लिया भी नहीं...’
‘मतलब ये कि अगर तुम तलाक चाहते हो, तो मुझे मुआवजा चाहिए। लिया कैसे नहीं,’ वह रुआँसी हो आई, ‘मैंने अपनी वर्जिनिटी तुम्हें सौंपी, इस शादी में अपना वक्त और भावनाएँ लगाईं, अब अगर तुम छोड़ना चाहते हो रागिनी के लिए, तो उसकी कीमत चुकानी होगी।’ कहते-कहते नताशा का लहजा सख्त हो आया।
मंजीत के दिमाग में रागिनी का चेहरा घूम गया। उसने सोचा कि अगर मैंने नताशा की बात मानी, तो मेरी जमा-पूँजी का बड़ा हिस्सा चला जाएगा। और अगर नहीं मानी, तो नताशा तलाक के लिए शायद तैयार न हो!
वो फँस गया था, उसने कहा, ‘नताशा, मुझे सोचने का वक्त दो।’
सुनकर नताशा ने कॉफी का कप उठाया और एक घूँट गले से उतारते हुए कहा, ‘ठीक है। लेकिन ज्यादा वक्त मत लेना। मैं एक-दो दिन में जवाब चाहती हूँ। और हाँ, रागिनी को बता देना कि उसकी जगह अभी पक्की नहीं है।’
...
रागिनी अपने घर पर मंजीत के फोन का इंतजार कर रही थी। और माँ उसे बार-बार ताने मार रही थी, ‘देख लेना, वो नताशा के साथ ही रहेगा। मर्द ऐसे ही होते हैं।’ और वह जवाब नहीं दे रही थी, लेकिन उसका दिल डूब रहा था।
तभी उसका फोन बजा। मंजीत का मैसेज था:
‘रागिनी, मैं घर पहुँच गया हूँ। हमें बात करनी है। नताशा तलाक के लिए तैयार है, लेकिन उसकी शर्त है...।’
मैसेज पढ़ते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। वो समझ नहीं पा रही थी कि खुश हो या डर जाए।
नींद का तो सवाल ही नहीं। जब सारे लोग खर्राटे भर उठे, मैसेज डिलीट कर और मोबाइल वहीं छोड़ वह दबे पाँव निकल गई। उसे डर था कि नताशा मंजीत के घर ही न ठहर गई हो! रात में कोई अनहोनी न घट जाय! शायद मंजीत भी इसी चीज से डरा हुआ था, तभी उसने लिखा कि, ‘हमें बात करनी है!’
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