पत्रिकाएं पोस्ट करने के लिए कईएक डाकघर के चक्कर लगाने पड़ते। क्योंकि लिफाफे अधिक होते और एक खिड़की पर पांच-सात से अधिक लिए नहीं जाते। खुश तो इसलिए हो गया कि आखिर एक काउंटर ऐसा भी मिल गया जहां भीड़ भी नहीं होती और वहां पर बैठने वाली बुकिंग क्लर्क मुस्कुराकर स्वागत भी करती। अगर मैं ज्यादा पत्रिकाएं उसे डिस्पैच के लिए दे देता तो कभी लौटाती नहीं, रख लेती। बोलती, 'कल आकर रसीद ले लीजिए।' इस तरह एक सिलसिला बन गया और मैं किसी दूसरी जगह चक्कर न लगाकर वहीं जाने लगा। और पहले 10
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यह मैं कर लूँगी - भाग 1
(धारावाहिक कहानी) (भाग 1) पत्रिकाएं पोस्ट करने के लिए कईएक डाकघर के चक्कर लगाने पड़ते। क्योंकि लिफाफे अधिक होते एक खिड़की पर पांच-सात से अधिक लिए नहीं जाते। खुश तो इसलिए हो गया कि आखिर एक काउंटर ऐसा भी मिल गया जहां भीड़ भी नहीं होती और वहां पर बैठने वाली बुकिंग क्लर्क मुस्कुराकर स्वागत भी करती। अगर मैं ज्यादा पत्रिकाएं उसे डिस्पैच के लिए दे देता तो कभी लौटाती नहीं, रख लेती। बोलती, 'कल आकर रसीद ले लीजिए।' इस तरह एक सिलसिला बन गया और मैं किसी दूसरी जगह चक्कर न लगाकर वहीं जाने लगा। और पहले 10 ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 2
(भाग 2) अब मैं मन ही मन अक्सर उसकी तारीफ करता रहता। अगले टर्न पर यह हुआ कि मैंने ही एक पत्रिका उसे अलग से दे दी। तो उसका नतीजा यह निकला कि उसने रसीदें कल ले जाने को नहीं कहा बल्कि यह कहा कि- 'आप कुर्सी पर बैठ जाइए, मैं अभी भेज देती हूं।' और मेरे सामने ही बारकोड लगाकर बुक करने लगी। तब मैं उसके चेहरे पर आते-जाते ख्यालों को पढ़ता रहा कि घर में और कौन है? पति से इसकी कैसी पटरी बैठ रही है, या नहीं! यह कितनी संतुष्ट है? दुखी है, सुखी है...! इस ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 3
(भाग 3) एक दूसरे को शांतवना देते कुछ देर हम लोग सोफे पर बैठे रहे। उसके बाद वह उठी, सूख चुके थे पर उनका नमक चेहरे पर चिपका रह गया था इसलिए उसने अपना चेहरा धोया फिर तौलिए से पोंछने लगी। तब मैंने उठते हुए कहा कि- अच्छा चलूं!' तो उसने रुँधे गले से कहा, रुक जाइए... खाना बनाती हूँ।' और मुझे भी लगा कि होटल में जाकर खाने से तो अच्छा है, मैं यहीं खा लूं। दूसरी बात यह कि इससे यह भी खा लेगी, अन्यथा हो सकता है, भूखी रह जाए। क्योंकि दुख में भूख-प्यास नहीं लगती। ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 4
(भाग 4) क्षमा को सरप्राइज देने, जब बिना बताए मैं उसके घर पहुंचा, शाम हो चुकी थी। वह शायद, ही में डाकखाने से लौटी थी और बिस्तर पर पस्त पड़ गई थी...यह मैंने इसलिए जाना कि उसने अभी कपड़े भी नहीं बदले थे और शायद आकर लेट जाने से विस्तर और उसके वस्त्र अस्तव्यस्त हो गए थे। उसकी निराशा देख भीतर आते ही मैंने तुरंत कहा कि- यह तुमने अपना क्या हाल बना रखा है! उसी बात में घुटती रहोगी तो जियोगी कैसे? मुझे देखो, मैंने तुम में अपनी बेटी को पा लिया और कितना उत्साहित हूं, कितना प्रोम्प्ट, ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 6
(भाग 6) जब छह बज गए, उसने अपना कंप्यूटर बंद किया और बैग उठा कर चल दी। स्कूटी निकाल की और मुझे बैठने को कहा। और मैं आज्ञाकारी बालक की तरह उसके पीछे बैठ गया। रास्ते में लग रहा था कि वह मुझे स्कूल से वापस घर ले जा रही है। यह भी बड़ा अनोखा अनुभव था। मैं सोच रहा था कि जीवन के उत्तरार्ध में यह कैसा मोड़ आया कि एक नई जिंदगी शुरू हो गई। घर आकर उसने ताला खोल स्कूटी अंदर रखी और बिना कुछ कहे सुने वॉशरूम के अंदर चले गई। मैं सोफे पर आकर ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 5
(भाग 5) इस रोग का कोई उपचार न था। किंकर्तव्यविमूढ़-सा मैं बैठा रहा। जब खूब रो चुकी, मैंने कहा, मैं भी अपनी बेटी के लिए इसी तरह रोता था। सालों साल रोया। लेकिन रोने से वह वापस नहीं मिली, मिली तो पत्रिका में और उसकी बदौलत अब तुम में आकर। सच कहता हूं, उस दिन तुम्हें कलेजे से लगाया तो लगा वह तुम में रूपांतरित हो गई है! यह तो अपना नजरिया है। तुम अपने पुत्र को पत्रिका में और न हो तो मुझ में पा सकती हो! कह कर भावनाओं के अतिरेक में मैंने उसे सीने से लगा ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 7
(भाग 7) आज मैं क्षमा के यहीं से फ्रेश होकर आया था इसलिए आकर सीधा पैकेट बनाने बैठ गया 9-10 बजे तक आज का सारा डिस्पैच तैयार कर लिया। क्योंकि 20 पत्रिकाओं से अधिक के पैकेट बनाना फिजूल था। इस शाखा में उस पर काम की अधिकता थी। एकल खिड़की थी- इसी पर किस्तें जमा होतीं, बिल जमा होते, आसपास के दो-तीन दफ्तरों की डाक-डिस्पैच और यहीं पर डाक सामग्री की खरीद भी। उसके सहयोग के लिए सिर्फ एक प्यून था...! तो इसी बात का ख्याल रखना था कि 20 से अधिक पैकेट न हों, नहीं तो उस पर ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 8
(भाग 8) जान बची तो लाखों पाए! सिटपिटाया-सा मैं रूम पर लौट आया। लगातार सोचता रहा कि उसे पता चला...या चल गया! क्या स्वप्न इतना जीवंत था कि होठ चूसना, उरोज मसलना जो अभी तक महसूस हो रहा है, वह हकीकत नहीं थी! और हकीकत थी तो उसे पता क्यों नहीं चला, क्या इतनी गहरी नींद सोई थी या फिर जाहिर नहीं होने दे रही...? रहस्य बहुत गहरा था। यह तो वही हुआ कि राजकुमार बीमार पड़ गया और सारे हकीम हार गए। अब राजा के प्राण घट में आ गए कि पता नहीं कल क्या होगा? अगर इसे ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 9
(भाग 9) जब रात के साढ़े दस बज गए वह चुपचाप चाय बना लाई। चाय पीने के दौरान ही अचानक पूछा, अच्छा, एक बात बताओ, पति से तुम्हारी अनबनन क्यों हो गई?' सुनकर वह कुछ देर के लिए मायूस हो गई फिर अतीत में डूब कर बताने लगी : अमित से मेरी शादी हुई तो मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी। वह एक केयरिंग हसबैंड और लविंग पार्टनर थे, और शादी के शुरूआती दिन मानो किसी सपने की तरह थे। ऐसा लगता था, जैसे- पूरा दिन हम बस एक-दूसरे में खोए रहें! एक-दूसरे का आलिंगन ही हमारी ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 10
(भाग 10) सिसकियां कुछ देर में थम गईं और वह शांत हो गई। तब मैं सोचने लगा कि अब जल्दी से सो जाय तो उधर चला जाऊं। स्पर्श से बचना चाहिए क्योंकि इससे कामोत्तेजना की भावना जाग सकती है, जो मुझे आत्म-नियंत्रण से दूर कर देगी। आत्म-नियंत्रण बनाए रखूं, अनुशासन और संयम बनाए रखूं यह जरूरी है, अन्यथा कल सरीखी अधूरी घटना आज पूरी घट गई तो सफेदी में दाग लग जायेगा। यह नादान है तो क्या, मैं तो परिपक्व हूँ! वैसे यह नादान यानी अनुभवहीन या अज्ञान तो नहीं है। जिसने पति से संसर्ग किया हो और गर्भवती ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 11
(भाग -11) वर्तमान अंक की सारी पत्रिकाएं डिस्पैच हो चुकी हैं। अब रुकने का कोई कारण नहीं था। वैसे मुझे यह शहर काटने को दौड़ता है, जिधर भी आता हूं भागते वाहन उनमें भरे हुए लोग...। पता नहीं यह भीड़ कहां भागी जा रही है? कहां से आ रही है! और इस भीड़ में कोई अपना नहीं। जो एक अपना दिखा उसे भी मैंने खो दिया। अगर मैं अपने आप को रोक पाता तो यह नौबत नहीं आती। क्या उससे आंख भी मिला पाऊंगा, अब! बहुत मायूस और निराश-हताश-सा पड़ा रहा देर तलक। सोचता-पछ्ताता कि वह घटना नहीं घटाता ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 12
(12) रिप्लाय में मैंने स्वीकृति दे दी। पर हृदय का जख्म ताजा हो गया। और फिर पन्द्रह-बीस दिन में जैसे-तैसे उसे भुला पाया तो, फिर एक मेल मिला, "दाम्पत्य" मैं अपने पति के बगल में सो रही थी... और वह फेसबुक पर लाॅग इन हुआ, अचानक एक सूचना मिली उसे, एक महिला ने उसे जोड़ने के लिए कहा था। उसने मित्र अनुरोध स्वीकार कर लिया। फिर एक संदेश भेजकर पूछा, "क्या हम एक दूसरे को जानते हैं?" उसने जवाब दिया: "मैंने सुना है कि तुम्हारी शादी हो गई है लेकिन मैं अब भी तुमसे प्यार करती हूँ।" वह अतीत ...Read More
यह मैं कर लूँगी - भाग 13
(13) प्रेम सबसे पवित्र वस्तु है। प्रेम आत्मा से होता है। शरीर से तो खिलवाड़ होता है जिसे लोग के नाम पर यूज़ करते हैं। प्रेम मजबूर नहीं करता, प्रेम मजबूत करता है। प्रेम स्वतंत्रता चाहता है। प्रेम अपनी मर्जी से होता है, प्रेम में शर्तें नहीं लागू होती, ये अनलिमिटेड होता है। प्रेम जब भी होता है जोरदार होता है, धुआंधार होता है। ये जाति-पात, ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा कुछ नहीं देखता बस हो जाता है। प्रेम में उनके झुमके चाँद-तारे लगते हैं। प्रेम में उनके मेहंदी वाले हाँथ 'बनारसी साड़ी का बॉर्डर' लगते हैं। प्रेम में उनका 'सुनो' कहना ...Read More