“जब तक दिखाई देते हैं”
यह दुनिया तालियों की गूँज में मुस्कुराती है,
पर तन्हाइयों की ख़ामोशी किसी को सुनाई नहीं देती…
सोशल मीडिया के इस मेले में
हर रिश्ता बस पिक्सल जितना हल्का रह जाता है।
जब तक आपकी तस्वीरें रोज़ चमकती हैं,
लोग आपको अपनी दीवारों पर सजाकर
दिल जैसा दिखता एक निशान दे जाते हैं।
कुछ पल को लगता है
वाह, कितनी मोहब्बत है यहाँ!
पर हक़ीक़त ये है कि
ये मोहब्बत स्क्रीन से बड़ी कभी नहीं होती।
आप ज़रा-सा ठहर जाएँ,
ज़िंदगी की भीड़ में खो जाएँ,
चार दिन दिखें नहीं…
तो ये दुनिया मानो आपको
भूलने की जल्दी में नज़र आती है।
जहाँ कल आपके नाम की चर्चा थी,
आज वहाँ एक नई पोस्ट का शोर है।
जहाँ आपने दिल खोलकर लिखे थे शब्द,
वहीं अब किसी और की मुस्कान तैर रही है।
कभी-कभी लगता है
शायद हम लोग नहीं,
हमारी उपस्थितियाँ पसंद किए जाते हैं—
जब तक हैं, तब तक ज़रूरी;
गायब होते ही
जैसे कभी थे ही नहीं।
पर सच तो यह है कि
दिल की गर्माहट
लाइक्स की गिनती में नहीं मिलती,
और सच्चे लोग
नोटिफिकेशन की तरह
कभी ऑफ़ नहीं होते।
इसलिए जो वक़्त
ख़ुद के साथ बीत जाए
वह सबसे सच्चा होता है।
और जो लोग
बिना आपकी ऑनलाइन छवि के भी
आपको याद रखें
वही आपके हैं,
बाकी सब सिर्फ़ भीड़ हैं।
आर्यमौलिक