🌿 प्रकृति का नियम 🌿
प्रकृति का नियम भगवान के वश का नहीं है,
सृष्टि का ये चक्र किसी के आदेश का नहीं है।
सूरज अपनी धुन में ही हर दिन उगता है,
बादल भी अपने मन से ही बरसता है।
हवा की चाल किसी प्रार्थना से नहीं मुड़ती,
नदियों की राह किसी इशारे से नहीं मुड़ती।
पेड़ बढ़ते हैं अपनी ही गति, अपनी पहचान से,
ऋतु बदलती हैं अपने समय, अपने सम्मान से।
धरती का संतुलन किसी वरदान से नहीं चलता,
जीवन का संगीत किसी फरमान से नहीं चलता।
प्रकृति कहती है—मैं सत्य हूँ, नियम हूँ, प्रमाण हूँ,
मैं स्वतंत्र हूँ, अनादि हूँ, हर जीवन की जान हूँ।
इसलिए आदर करो मेरा, मेरे हर रूप का मान करो,
जो मैं देती हूँ उसे सहेजो, और मुझे परेशान न करो।