दिल की बात
कहना तो बहुत कुछ है,
पर लब खामोश रहते हैं,
जैसे हवाओं में गूंजे सरगम,
पर सुर कहीं खो जाते हैं।
हर धड़कन में एक किस्सा है,
पर जुबाँ तक आता नहीं,
रूह कांपती है कहने को,
फिर भी इकरार होता नहीं।
आँखों से कह देता हूँ अक्सर,
पर वो भी अनकही रह जाती हैं,
भीड़ में मुस्कान ओढ़कर,
खामोशियाँ साथी बन जाती हैं।
शायद वक्त समझ ले दिल का,
शायद वो एहसास सुन ले कोई,
वरना ये दर्द यूँ ही रहेगा,
एक राज़ बनकर... सिर्फ़ दिल में कहीं।