सुबह आंख खुलते ही घड़ी पर नज़र दौड़ाई
घड़ी के आगे बढ़े कांटे देख, गुस्से से मैं बड़बड़ाई
आज इतनी देर तक तू कैसे सोते रह गई
हे भगवान! तू कब से इतनी लापरवाह हो गई
हाथ मुंह धो जैसे ही किचन की ओर बढ़ी
सबको चैन से सोता देख
एकदम से मेरे दिमाग की बत्ती जली
पगली! आज इतवार है
बेकार में ही तू इतनी जल्दी जगी
दुबारा सोऊं या कमर कस लगूं समेटने काम
वैसे भी है आज इतवार और दिनों से होंगे दुगने काम
आराम काम के बीच में हो रही थी दिमाग की दही
मैंने भी कर दिमाग को दरकिनार अपने दिल की सुनी
तानी फिर से चादर और इतवार की मीठी नींद लेने चली।
सरोज प्रजापति ✍️
- Saroj Prajapati