बरसाने की गोरी, वृंदावन का श्याम,
प्रेम की यह गाथा, युगों से है प्रसिद्धि का नाम।
मिलन की हर लय में था आत्मा का संवाद,
संगीत के स्वर जैसे प्रीत का परिहास।
राधा की चाल जैसे बहारों की बात,
कृष्ण का हर कदम बनाता प्रेम का प्राचीर।
जब यमुना किनारे वो दो नयन मिले,
आकाश के तारे भी अपने आँचल में सिमट गए।
रास की रात्रि, शरद की वह बेला,
हर गोपी के दिल में बजता प्रेम का मेला।
पर राधा का स्थान था सबसे अलग,
उनका प्रेम तो आत्मा का उत्सव।
कृष्ण ने कहा, "राधा, तुम मेरी प्रीत,
तुम बिन अधूरी यह जग की संगीत।
तुम मेरी सखी, मेरी प्रेयसी, मेरी शक्ति,
तुमसे ही बनी यह सृष्टि की भक्ति।"
फिर आया विरह, जो था प्रेम का दूसरा रूप,
जब मथुरा को छोड़, गए कान्हा दूर।
राधा के अश्रु जैसे यमुना का जल,
लेकिन प्रेम में छुपा था त्याग का पल।
वह विरह भी तो प्रेम का अंग था,
दो दिल, दो आत्माएँ, लेकिन प्रेम अडिग था।
राधा ने कहा, "कृष्ण, तुम चाहे कहीं भी रहो,
मेरे हृदय में सदा तुम्हारा ही आलोक।"
इस प्रेम ने सिखाया जग को यह सत्य,
प्रेम न सीमित है, न है इसमें कोई व्यर्थ।
यह आत्मा का संगम, यह ईश्वर का वरदान,
राधा-कृष्ण का प्रेम है अजर, अमर और महान।
जग में अगर प्रेम को समझना हो,
तो राधा-कृष्ण का नाम लो।
यह प्रेम नहीं केवल, यह जीवन का सार,
जो बांधता है सबको, है यह प्रेम का उपहार।