✤┈SuNo ┤_★_
कागज की कश्ती बनाके, समंदर
में उतारा था"
मैंने भी कभी ज़िन्दगी, बादशाहों
सा गुजारा था,
बर्तन में पानी रखके बैठ, घंटों
उसे निहारा था"
फलक के चांद को जब जमीं पे
मैंने उतारा था,
ना तेरा था ना मेरा था, हर चीज
पे हक हमारा था"
मासूम सा दिल, जब कोरे कागज
सा हमारा था,
बे-पनाह सी उमंगें कई थी, कई
मंजिल कई किनारा था"
अब तो तन्हा जी रहा हूं मैं, तब
महफिलों का सहारा था..🔥
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#LoVeAaShiQ_SinGh °
⎪⎨➛•ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी°☜⎬⎪
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