कहानियों से पढ़ी हूँ मैं.. कहानियों से जुड़ी हूँ मैं... हर एक सुनहरे मोड़ पर, कहानियों से ही तो खड़ी हूँ मैं...
क्या होता अगर हम, कहानियों से कुछ सीख पाते.. नजरियों से आगे बढ़, नजारों को देख पाते..
क्यों न होता कोई, कहानी के किरदार सा खिला.. ना रहती किसी से शिकायत, ना होती रंजिशें और गिला...
आज लगता है, खिलखिलाकर कहीं दूर बह जाऊँ मैं.. छोड़ काफ़िरों का मेला, बस कहानियों में ही रह जाऊँ मैं..