मुझको मेरी कमी खलती है...
जाने क्या बात हुई ऐसी,
जब-जब ये शाम ढलती है..मुझको मेरी..
सुलझाते ही उलझ जाता हूँ
इनमें ही जिंदगी पलती है...
खींचातानी समय की ऐसी,
हरपल नए रंग बदलती है..मुझको मेरी..
मसले कम होते ना दिखते,
मोल नहीं किसका है यहां...
पैसों में सभी बिकते दिखते,
पीड़ाएं नए रूप बदलती हैं..मुझको मेरी..
#सनातनी_जितेंद्र मन
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