मैं निभा रही हूँ पूरी ईमानदारी से ये रिश्ता,
तुम झूठे प्रेम की ओट में देते चले जा रहे हो मुझे दगा।
मुझे सब पता है… फिर भी न जाने क्यों,
हर सच जानकर भी निभा रही हूँ तुमसे ही वफ़ा।
तुम देते रहो… हर बार, दगा पर दगा—
पर मैं तो वही हूँ, जो टूटकर भी तुम्हें ही चुने हर दफा।
- archana