“आधी रात होने को है”
आधी रात होने को है,
और हम सुन सकते हैं अपनी ही साँसों का गूंजना।
रात के इस पहर में बहुत से ख़याल मन में आ रहे हैं —
गुज़री ज़िंदगी के दौर, बीते चेहरे, कुछ अधूरी बातें,
और माथे पर गहरी होती कुछ नई शिकनें।
कभी-कभी लगता है कि ज़िंदगी एक अंतहीन रास्ता है,
जो कहीं नहीं जाता।
आज भी वैसा ही लग रहा है —
उलझे, बेतरतीब ख़याल दौड़ रहे हैं मन के भीतर।
ज़िंदगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती।
कभी ऐसा वक्त भी आता है
जब सब कुछ रंगहीन, बेमानी लगने लगता है।
ऐसे जीने से तो मर जाना बेहतर लगता है।
हर पल भारी लगने लगता है,
और अंधेरा अपना-सा लगने लगता है।
हम खुद को कैद कर लेते हैं एक दरवाज़े के पीछे,
हम बोलना बंद कर देते हैं —
और सुनने लगते हैं आधी रात के सन्नाटे में
घड़ी की टिक-टिक,
पानी की टपकती बूँदों की आवाज़।
फिर पता नहीं कब, साल गुज़र जाते हैं।
हम बूढ़े हो जाते हैं एक जवान शरीर में
और भी बहुत सी बातें हैं जो आधी रात में डराती हैं।
अकेलापन अब भी साथ है।
उदासी फैली है, और आँखें बंद नहीं होतीं।
नींद तो ऐसे वक्तों में चुपचाप निकल जाती है —
और आँखें सारी रात झपकती हैं,
फिर से खुल जाने को।
हाँ, एक वक़्त ऐसा भी आता है
जब हम कहना बंद कर देते हैं —
अपनी परेशानियाँ, भीतर के घाव,
नए हादसे, पिछली रात का बुख़ार,
या कोई मज़ेदार किस्सा।
हम कुछ भी कहना बंद कर देते हैं —
और एक रोज़,
हम जीना भी बंद कर देते हैं।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️