"मैं अभी जीना चाहती हूँ"—
ऐ ज़िन्दगी, ज़रा ठहर जा।
इतनी जल्दी क्या है जाने की?
अभी तो मैंने तेरी धूप में अपनी परछाई तलाशनी शुरू की है।
अभी तो मेरी हथेलियों में कुछ अधूरी दुआएँ हैं,
साँसों में अनकहे ख्वाब,
और दिल में वो चाहतें जो अब तक नाम की मोहताज रहीं।
तेरे हर लम्हे को महसूस करना चाहती हूँ,
हर मुस्कुराहट को अपने भीतर सहेज लेना चाहती हूँ।
मत भाग,
अभी मेरे भीतर उम्मीद की एक नई कोंपल फूटी है,
जिसे तेरा साथ चाहिए—
रुक जा,
थोड़ा और, बस थोड़ा और ठहर जा।
मैं अभी जीना चाहती हूँ। —
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️