“रूह का सुकूँ”
जो अब भी ख़्वाबों में मेरा इंतज़ार है,
वो मेरा इश्क़, मेरी मोहब्बत, मेरा प्यार है।
कल्ब मुनव्वर हो उठे उसके ख्याल भर से,
चश्म-ए-बद-दूर बडा दिलकश मेरा निगार है।
ग़म की आंधी कोसो दूर है अब मुझसे,
जबसे बन गया वो मेरा ग़मख़्वार है।
ज़हन-ए-दिल में बस गया है जो शख्स "कीर्ति"
वो मेरी रूह का सुकूँ, वही मेरा इफ़्तिख़ार है।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
कल्ब = दिल
मुनव्वर = रोशन
चश्म-ए-बद-दूर = नज़र ना लगे
दिलकश = प्यारा
निगार = महबूब
ग़मख़्वार = हमदर्द
इफ़्तिख़ार = शान, मान, सम्मान, गर्व