वो नटखट अदाएं, ये शरारत भरी आँखें,
कुछ ज़ुबाँ पर नहीं, दिल में हैं हज़ारों बातें।
कभी रूठ जाना, कभी पल में मान जाना,
ये तेरी आदत है, या कोई नई शरारत है?
लबों पर हँसी और आँखों में छुपा काजल,
ये कैसी कशिश है, जो करती है हमें घायल।
उसका यूँ ही, पास आ के, दूर चले जाना,
ये दिल के लिए, हर पल का एक फ़साना।
तेरी हर शरारत पर, हम कुर्बान हो जाते हैं,
पता है फिर भी हम , अनजान बन जाते हैं।