चाँद की नाराज़गी 🌙✨
चाँद आज बादलों की आड़ में महफ़ूज़ है,
शायद मुझसे कुछ ख़फ़ा है…
हवा भी सरगोशियों में मशगूल है,
मानो उसकी हिफ़ाज़त का पहरा दे रही हो।
अगर कभी दीदार का सिलसिला हो,
तो झुककर अदब से सलाम करूँ,
उसकी ख़ामोशी में दबी हर दास्ताँ को सुनूँ,
जो सदियों से रात के सीने में महफ़ूज़ है।
रात की गहरी तन्हाई में,
वो परदों में रहकर भी नूर बिखेर देता है,
मानो कह रहा हो—
हर हुस्न की असल शान,
उसके परदों में रहने में ही है।