---
स्त्री, तुम कोई वस्तु नहीं हो
जो खुद को वस्तु समझती हो,
तुम जल हो — जीवन की धारा,
तुममें है वो शक्ति जो संसार को संवारती है।
पानी बनो, पर बहती बूँद नहीं —
एक पहचान बनाओ,
जैसे पहाड़ों से निकली नदी
सारी बाधाओं को तोड़कर
अपना रास्ता खुद बनाती है।
चट्टानों से टकराकर भी
वो रुकती नहीं, झुकती नहीं,
बल्कि अपने बहाव में
हर रुकावट को बहा ले जाती है।
तुम भी वही बहाव हो, वही जज़्बा,
जिसमें संघर्ष है, सौंदर्य है, और शक्ति भी।
मत ठहरो किसी के निर्णय पर,
अपने अस्तित्व को खुद गढ़ो।
तुम सृजन हो, तुम प्रेरणा हो,
तुममें असीम संभावनाएँ छुपी हैं —
उन्हें पहचानो, उन्हें अपनाओ,
क्योंकि स्त्री, तुम कोई वस्तु नहीं, एक सम्पूर्ण शक्ति हो।