जहाँ की बात हो और तू आए,
घटा की बात हो और तू आए।
कोई किस्सा, कोई मसला हो क्या,
मेरी हर बात में बस तू आए।
ग़म-ख़ुशी की परवाह अब क्या करता,
तेरे आने से आए, तेरे जाने से जाए।
मुख़्तलिफ़ ख़ुशबू कहूं तो रुकती कहाँ,
बदनाम तेरे इश्क़ में क्यों हुआ जाए?
आदमी फ़रिश्ता बन भी गया तो क्या,
क़यामत से पहले अगर तू आए।
हाथ थामे हाथ छोड़ने के लिए,
जा-ब-जा बिकता हुआ बाज़ार सजा रखा जाए।
उलटी है गिनती हर शख़्स की जिसे मिला,
बात निकली तो बात सिर्फ़ बात तक रह जाए।
कूचा-ए-बाज़ार से अब क्या रखूँ रिश्ता, कैसे?
नज़र बदली नहीं कि नज़ारा भी बदल जाए।
तुम बहुत तेज़ हो, देखा मैंने,
अब हर घड़ी वक़्त से वक़्त क्या पूछा जाए?
ए आदमी की जात को हुआ क्या, किसे पता?
जज़्बात बहुत तेज़ हैं, मगर दिल क्यों चालबाज़ रखा जाए?
फ़ुर्सत मिली तो लिखूंगा तुझ पर मैं ग़ज़ल,
अवधूत की हर फ़ुर्सत में तेरा ही ख़याल आए।
_अवधूत सूर्यवंशी