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"त्याग दे विश्वास और उम्मीद"
(एक आत्म संवाद)
तू क्यों रखती है विश्वास अब भी,
जब तेरा कोई नहीं इस भीड़ में?
जो अपना लगे, वही पराया निकला,
सब झूठे भ्रम हैं, सब माया निकला।
छल-कपट से भरी है ये दुनिया,
सच्चाई यहाँ बस एक तमाशा है।
तू क्यों बाँधे बैठी है उम्मीदें,
जब हर उम्मीद एक धोखा है?
उन्हें परखना तू सीख ले अब,
जो हँसें साथ, वे संग नहीं होते।
तेरा दर्द, तेरे आँसू, तेरी तन्हाई —
किसी और के हिस्से नहीं होते।
छोड़ दे अब ये मीठे भ्रम,
जो दिल को बहलाते हैं झूठे।
अपने मन से कर दे त्याग तू,
विश्वास और उम्मीद के टूटे टुकड़े।
अब खुद पर ही रख यकीन,
तेरा रास्ता तुझसे है रोशन।
किसी और का क्या भरोसा,
जब तू ही है अपनी पहली किरण।