Hindi Quote in Book-Review by Biru Rajkumar

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भाग 9: प्रेम बंधन - अंजाना सा

शिव इस बार रीना का बहुत ज़्यादा ख्याल रख रहा था। नौ महीनों की ममता और इंतज़ार के बाद, रीना ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया—एक प्यारा बेटा और एक नन्ही सी बेटी। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

रेवाश अपने छोटे भाई-बहन को देखकर बेहद उत्साहित था। वो मासूमियत से बोला, “मम्मा, मैं बेबी को छू सकता हूँ?”
रीना ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया, और रेवाश ने धीरे से अपनी बहन की उंगली पकड़ी। उस पल की खुशी हर किसी की आंखों में चमक बनकर उतर आई।

कुछ दिनों बाद दोनों बच्चों का नामकरण हुआ। बेटे का नाम मनीष रखा गया और बेटी का नाम रेवाशी।
शिव, रीना और दादी – तीनों बच्चों को देखकर गदगद थे।

इसी दौरान राहुल की भी शादी हो गई। उसकी पत्नी गौरी बहुत सुंदर और समझदार थी, और अब वो भी मां बनने वाली थी। राहुल दिन-रात उसका ध्यान रखता, उसका हर ख्वाब पूरा करता।

रेवाश अब स्कूल जाने लगा था। पढ़ाई में बहुत होशियार था और हर बार कक्षा में टॉप करता। उसके गुरुजन उसकी बुद्धिमत्ता और संस्कारों से प्रभावित रहते।

समय बीतता गया। आठ साल बाद सबकी ज़िंदगी बदल गई थी।
राहुल और गौरी के भी दो बच्चे हुए – अभय और आध्या। सब बच्चे अब स्कूल जाने लगे थे।

घर में अब हमेशा चहल-पहल रहती थी। मनीष तो घर को खेल-खेल में “गढ़ुड़ का अड्डा” बना देता था, कभी चादर की टनल, तो कभी तकियों का किला।
रेवाश अपने छोटे भाई-बहन का हमेशा साथ देता और उनकी हर शरारत में उनका भागीदार बनता।

रेवाशी तो सबसे ज्यादा नटखट निकली। उसकी मुस्कान और मासूमियत हर किसी का दिल जीत लेती।
राहुल के बच्चे – अभय और आध्या – भी किसी से कम नहीं थे। दोनों अपने चाचा-चाची के बच्चों के साथ खूब मस्ती करते।

शिव, राहुल, रीना और गौरी – सब अपने बच्चों को देखकर बेहद खुश होते। बच्चों की शरारतें, उनकी पढ़ाई, और घर की रौनक – सब मिलकर एक सुंदर तस्वीर बनाते।

अब शिव और राहुल ने अपने बिजनेस पर और ध्यान देना शुरू कर दिया था।
शिव का टेक्सटाइल का काम और राहुल का फर्नीचर डिज़ाइन का बिजनेस दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करने लगा।

दादी सबको देखकर ईश्वर का धन्यवाद करतीं – "हे भगवान! सबको ऐसा ही सुखी परिवार देना।"

इस तरह समय अपनी रफ्तार से चलता गया, लेकिन इस परिवार की खुशियाँ और प्रेम हमेशा अडिग रहे – जैसे कोई अंजाना सा बंधन, जो रिश्तों को और भी गहरा करता चला गया।

Hindi Book-Review by Biru Rajkumar : 111987788
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