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भाग 4: प्रेम बंधन - अंजाना सा
"क्या यही है मेरी मंज़िल?"
शिव के मन में ये सवाल बार-बार गूंज रहा था, पर उस सवाल का उत्तर शायद खुद उसे भी नहीं मालूम था। उधर, रीना अपनी ही सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, जहाँ न कोई सवाल था, न जवाब — बस एक शांत सी कल्पना, जो उसकी दुनिया को रंगीन बना रही थी।
शिव, जो बिज़नेस के सिलसिले में शिमला आया था, मीटिंग खत्म कर सुकून की तलाश में पहाड़ों की वादियों में निकल गया। ठंडी हवा, दूर तलक फैली हरियाली और वो शांत वातावरण — सबकुछ उसे बेहद सुकून दे रहा था।
उसी वक़्त उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी।
वो लड़की — शांत, मासूम और कुछ अनजानी सी...
शिव की निगाहें उस पर ठहर सी गईं।
वो उसे निहारता रह गया। जैसे वक़्त थम गया हो।
शिव ने फ़ौरन अपने खास दोस्त राहुल को फोन मिलाया,
“राहुल, उस लड़की का पता करो। मैं पूरी डिटेल चाहता हूँ — नाम, कहाँ रहती है, सबकुछ।”
राहुल ने भी बिना देरी किए जवाब दिया, “ठीक है भाई, अभी पता करता हूँ।”
उधर रीना, इस अनजानी नज़रों और भावनाओं से बिल्कुल अनजान थी। उसे क्या पता था कि उसकी एक झलक ने किसी का जीवन ही बदल दिया है। शायद ये वही दुआ थी जो उसने कई रातों तक ईश्वर से की थी — लेकिन उसे खबर नहीं थी कि उसकी प्रार्थनाएं सुन ली गई हैं।
कुछ ही दिन बाद, शिमला से सब लोग वापस लौट गए और अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए। शिव भी दिल्ली लौट आया।
दिल्ली पहुँचकर उसने राहुल से पूछा, “पता चला उस लड़की के बारे में?”
राहुल ने मुस्कराकर कहा, “हाँ भाई, पूरी जानकारी मिल गई है। उसका नाम रीना है। मिडिल क्लास फैमिली से है। उसके घर में माता-पिता और एक छोटा भाई है। और हाँ... एक और बात — उसकी शादी तय हो चुकी है। शादी सिर्फ 10 दिन बाद है।”
शिव कुछ देर तक चुप रहा...
उसके मन में कई भावनाएँ उमड़ रही थीं —
क्या यही लड़की मेरी तक़दीर है?
क्या अब कुछ कर पाऊँगा या बहुत देर हो चुकी है...?
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