"बरसती हवेली"
एक हवेली थी चुपचाप सी,
दीवारों में बसी दो कहानियाँ थीं।
बारिश आई तो हर ईंट भीग गई,
जैसे यादों ने कोई सुर छेड़ दी।
पहली कहानी थी चिट्ठियों की तरह,
हजारों शब्द मगर कहे ना गए।
दूसरी थी आँखों की ख़ामोशी में,
जहाँ प्यार हर बूंद में बहा करे।
छत टपकी तो वो पलकों पर गिरा,
उसके कदमों की आहट सी सुनाई दी।
और हवेली मुस्कुरा उठी चुपचाप,
जैसे बरसातें फिर मिलने आई थीं।