🕯️ “मन की आस” 🕯️
(जब चारों ओर अंधेरा हो, तब भी मन न हारे)
कहीं कोई उम्मीद नहीं, ना कोई दर है खुला,
हर तरफ सन्नाटा है, जैसे वक्त भी खुद पे तन्हा चला।
चेहरे पे मुस्कान नहीं, आँखों में नमी सी है,
हर साँस में बोझ है, हर सुबह में थकन सी है।
पर कहीं अंदर, दिल के कोने में एक बात बची है,
उसी चुप्पी में छोटी सी कोई आवाज़ उठी है।
“शायद ये वक्त भी कट जाएगा,
शायद अंधेरा भी बंट जाएगा।
ये जो मन में रह गई है थोड़ी सी आस,
वो ही तो रखे है जीवन की सांस।”
नदी को नहीं पता समंदर कितना दूर है,
फिर भी वो बहती है… क्योंकि उसे खुद पर गुरूर है।
हम भी चलेंगे, चाहे राहों में काँटे हों,
क्योंकि हमारी हिम्मत, किस्मत से आगे की बातें हों।
बी.डी.ठाकोर