......जिज्ञासु यात्री........
ना आत्ममुग्ध ,ना मंत्रमुग्ध,
मै जिज्ञासु युक्त यात्री जग के
उन्मुक्त धरा, उन्मुक्त व्योम,
उन्मुक्त सभी बंधन भव के,
ना शूरवीर, ना नवनियुक्त,
ना अविरल गुण प्रवाहमय है
उन्माद मुक्त ,भय से विमुक्त,
आस्था मेरा शिवाय में है
ना दुर्गति अति, ना प्रेम लाप,
ना कुंठा शेष प्राण में है
ना आभूषित, ना अति विशिष्ट,
ना ही निष्प्राण तन है
-: पवन कुमार शुक्ला:-