*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*ग्रीष्म, सूरज, अंगार, अग्नि, निदाघ*
*ग्रीष्म* प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।
मौसम के सँग में सजी, बाणों की यह सेज।।
*सूरज* की अठखेलियाँ, हर लेतीं हैं प्राण।
तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।
बना जगत *अंगार* है, धधक रहे अब देश।
कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।
तपती धरती *अग्नि* सी, बनता पानी भाप।
आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।
भू-*निदाघ* से तृषित हो, भेज रही संदेश।
इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
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