बंधन दिलों का
स्नेह-सरिता मधुर तरंगित,
बहती अंतर के तट पर,
रंगहीन जीवन को देती,
राग-रश्मियों का अम्बर।
हृदय वीणा के तार जुड़ें जब,
स्वर अनहद झंकृत होते,
मन के चंचल बादल ठहरें,
स्नेह-गगन में विमल प्रकाश बोते।
नभ से झरते शुभ्र उजाले,
मृदु उषा के स्वर्ण तंतु,
बंधन यह आलोक-तुल्य,
सिक्त प्रेम के चिर अनुनाद।
शब्दहीन संगीत बंधन,
मूक स्पर्श में घुला हुआ,
भावनाओं का मौन प्रवाहित,
अग्नि-शिखा सा तुला हुआ।
काल मिटाए देह, पंथ,
पर यह संबंध अमर रहेगा,
चिर अनंत की लहरों पर भी,
बंधन दिलों का सदा बहेगा!