आज भी लोगों की सोच देख कर बड़ा अफसोस होता है
गांव में जब गिरदावरी क्रॉप कटिंग करने जाते है तो लोगों का व्यवहार देख कर बड़ा आश्चर्य होता है
कुछ लोग पूछते है मैडम आपकी जात क्या है ?
चलो यहां तक ठीक है हद तो तब होती है
जब मैं बताती हूं कि प्रजापत कुम्हार हूं तो पूछते है कौनसे कुम्हार
अब ये चीज मुझे और ज्यादा अटपटी लगती है
बेकार बिना मतलब की जिसका कोई सर पैर नहीं
शायद मुझे ये बताना भी बड़ा बकवास सा लगता है कि भाई मै कुम्हार हूं
ऐसा नहीं है कि मुझे अच्छा नहीं लगता या मुझे इस सवाल से कोई दिक्कत है
पर मुझे दिक्कत बस उस जवाब से है
बस बात इतनी सी है कि मुझे बस जो मैं हूं उससे पहचाना जाए
जिसके लिए मैने मेहनत की या जो मैं खुद के बल बूते पर हूं उससे मुझे जाना जाए
ना कि उससे जो होने में मेरा कोई हाथ नहीं
लोग जाने क्यों गर्व करते है किस चीज का गर्व करते है
शायद ऊपर वाले को कोई अर्जी डाल के दुनिया में आए हो...और अर्जी डालने की व्यवस्था ऊपर दरबार में होती तो शायद कोई जानबूझ के इस भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहता। सोशल मीडिया पर देखे तो एक ट्रेंड सा बन गया है अपनी जात पर गर्व करने का और दूसरी जाति को निचा दिखाने का
जब ऐसे लोगों के देखती हूं तो तरस आता है मुझे उन पर
आज ही की बात है एक आदमी बोले... मैडम इतने साल हो गए मैने ST SC के खेत का धान नहीं खाया...वो शायद मुझे बताते हुए गर्व कर रहा था पर मुझे उसकी सोच पर अफसोस हो रहा था।
इतनी चाहत नहीं रखती कि किसी का दिल दुखाउ पर अर्ज सिर्फ इतनी सी है कि कोई जानबूझ कर किसी इंसान का दिल ना दुखाए...
मैं बार बार अपने ब्लॉग में लिखती आई हूं कि ये जात पात उच्च नीच सब मानव निर्मित है...अपने फायदे के लिए
प्रथम मानव मनु द्वारा लिखित पुस्तक मनु संहिता भी मेरी समझ से परे है...एक सोची समझी साजिश है इंसान से इंसान को दूर करने की
मैं तो ये भी नहीं मानती कि मनु संहिता ब्रह्मा पुत्र मनु द्वारा लिखी गई है...क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ में जातिवाद था ही नहीं उस वक्त तो कर्म आधारित व्यवस्था थी ये तो वैदिक काल की देन है...आज इतने वर्षों बाद भी इंसानों की ये अवस्था देख हृदय बड़ा विचलित सा हो जाता है।
हम लोग इंसानों में ही भेद किए बैठे है...मेरे कई करीबी रिश्तेदार कहते है कि इसको पढ़ा लिखा के गलती कर दी...पर मैं समझती हूं कि अगर मैं किसी इंसान को बस एक इंसान के रूप में देख पा रही हूं...भगवान के बनाए मिट्टी के पुतलों में भेद नहीं कर रही तो मेरा पढ़ना लिखना बेकार नहीं गया क्योंकि पढ़ी नहीं होती तो समझ ही नहीं पाती कि हम सब ही एक ही सांचों में ढले इंसान है जिन्हें इंसानों की कंपनी द्वारा जात का टैग लगाया हुआ है
ArUu ✍