एक चेहरा बहुत याद आता है...जिसे गुजरे जमाना हो गया पर उसे याद कर दिल आज भी भर आता है
उनका साथ कुछ वक्त और मिल जाता
उनके साथ बीते लम्हे कुछ समेट लेती मैं खुद में
अतीत बन गया है सब कुछ पर अतीत में जीना मैं नही भूलती
कितना ही समझा लू पर खुद से शिकायत करना मैं नहीं भूलती
एक कसक हमेशा रह जाती है कि काश
उन आखिरी दिनों में थोड़ा रब से भी लड़ लेती
जो विधि का विधान था उससे जिरह कर कुछ क्षण मैं चुरा लेती...पर ये कसक बस हर घड़ी जेहन में रह जाती है
और वहीं यादें बार बार मस्तिष्क की दीवारों से टकरा मुझे शिथिल कर जाती है।
रात का सन्नाटा भी भीतर एक शोर कर जाता है
क्यों नहीं माॅं पास ये ख्याल चहुओर कर जाता है
जैसे तैसे समेट मैं अपनी वेदनाएं
खुद को रोज बनाती हूं
बिन माॅं जिए कैसे ये कठिन पाठ खुद को पढ़ाती हूं।
जो हुआ वो तो होना ही था
आखिर कार मुझे अपना प्रिय शख्स तो खोना ही था
पर फिर सुबह से शाम ढलते बिखर सी जाती हूं
ArUu है सबसे मजबूत ये बात भूल सी जाती हूं
फिर अतीत में गोते लगाती खुद को कही गहरेे यादों के समंदर में पाती हूं
बस इसी तरह खुद को पाने और खोने का सिलसिला हर रोज दोहराती हूं।