उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 29 की
कथानक : रमन जमानत पर छूट कर आया तो उसके समर्थन व स्वागत में उसके घर पर समर्थकों का हुजूम था। लेकिन रमन को वहाँ नंदू ताऊ दिखाई न देने पर शंका हुई तो उसके घर पर एक व्यक्ति को भेजने पर पता चला कि ताऊ के बाएँ हिस्से में लकवा हो गया था। बाद में उसे गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उसे वेंटिलेटर पर रखा गया यद्यपि ताऊ के बचने की आशा न थी।
उधर एसडीएम कविता को राधोपुर जाकर भारी मन से ऊपरी आदेश की पालना में पाठशाला को सील करना था। उस समय रमन वहाँ नहीं था क्योंकि रमन को ताऊ के पास अस्पताल जाना पड़ा था।
पाठशाला को सील करते समय कविता का रमन की माँ से सामना हुआ था, इन विकट परिस्थितियों में। हालांकि ग्रामीणों के भारी आक्रोश के बीच विनम्रता से समझा कर कविता ने उन्हें शांत कर दिया था। उधर नंदू ताऊ को डाॅक्टर ने घर ले जाने की सलाह दे दी थी अत: घर लाते-लाते ताऊ के प्राण-पखेरू उड़ गए थे।
कविता दो सप्ताह के अवकाश पर अपनी मम्मी-पापा के घर चली गई जहाँ उसकी भुवा सुमित्रा को भी बुला लिया गया था। शिमला में कविता के मन को कुछ शांति मिली किन्तु तभी उसे ऑफिस से फोन आया कि उसे स्थानांतरित कर दिया गया है अत: उसे तुरंत नये स्थान पर कार्यग्रहण करना था।
कविता ने स्वयं को प्रथम बार इतना अकेला और कमजोर अनुभव किया था।
उपन्यासकार द्वारा इस अंक में रमन व कविता की विषम परिस्थितियों का कारुणिक वर्णन अंकित है। इन स्थितियों में रमन व कविता ही नहीं, बल्कि रमन के परिवारजन दुष्चक्रों में फंसकर तो कविता के परिजन उसकी व्यस्तता तथा विवाह के लिए हाँ न करने को लेकर परेशान थे।
यहाँ प्रस्तुत हैं, बुआ सुमित्रा व कविता के बीच के वार्तालाप के अंश क्योंकि कविता के मम्मी-पापा ने उसके विवाह सम्बन्धित प्रकरण की जिम्मेदारी सुचित्रा को सौंप दी थी:
- 'शादी के बारे में तेरा क्या विचार है?'
- 'जरूरी है?'
- 'यह तो जमाने का दस्तूर है। राजा की बेटी को भी पराये घर जाना पड़ता है। हर चीज उम्र के लिहाज से ही अच्छी लगती है।'
- 'बुआ जी, इस समय मैं ऐसी स्थिति में नहीं हूँ कि आपको कोई सीधा जवाब दे सकूँ। यह ऐसा विषय है, जिस पर तुरंत निर्णय कर पाना सम्भव नहीं है।'
- 'परन्तु कब तक? भैया और भाभी तेरी शादी को लेकर चिंता में हैं। हर माँ-बाप का एक सपना होता है, औलाद की खुशी का। तू नहीं जानती, वे इस घड़ी के लिए कितने उत्सुक हैं।'
- 'बुआ जी, मैं किसी के दिल को ठेस पहुँचाना नहीं चाहती हूँ। परन्तु फिलहाल मैं अपनी जिन्दगी की किताब में कोई नया पन्ना नहीं जोड़ना चाहती। कार्यालय में घटित कुछ ऐसी बाते हैं, जिनका मुझ पर काफी मानसिक दबाव रहा है और उसी से उबरने के लिए मैं यहाँ पर आई हूँ।' (पृष्ठ 457-58)
लेखक ने कविता का स्थानांतरण करवा कर एक नई विषम स्थिति पैदा कर दी है। अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि वे अपनी कल्पनाशक्ति से किस प्रकार उपन्यास के नायक-नायिका में पुन: सामंजस्य बिठाते हैं।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया
30.12.202