उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 28 की
कथानक : रमन कविता के राधोपुर आने और पाठशाला देखने के समाचार से अत्यधिक उत्साहित था। अभी रमन की बहन भी पीहर आई हुई थी।
रात हुई तो जब सभी सो रहे थे कि कुत्तों के भौंकने का स्वर बुलंद हुआ। अचानक रमन के घर के गेट को पुलिस ने डंडे से खटकाया। पुलिस ने रमन के घर पर एक कमरे में पाठशाला की तलाशी ली तो उसमें शराब की बोतलों का एक कार्टून रखा था जो वस्तुत: विरोधियों की रमन को गिरफ्तार करने व पाठशाला बंद करने की साजिश थी। पुलिस वालों को रमन को गिरफ्तार कर ले जाने में बहुत सारे लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। बदतमीज एएसआई के तेवर लोगों के आक्रोश को देखते हुए ही कुछ ढीले पड़े थे।
रमन को जीप में ले जाते समय रात्रि के तीसरे पहर में ड्राइवर भी उनींदी आँखों से गाड़ी चला रहा था। अचानक ड्राइवर ने पूरी शक्ति से ब्रेक लगाए और जीप गीली मिट्टी में धँस गई। एएसआई आगे की ओर औंधे मुँह गिरा, लहूलुहान हो गया। रमन को खरोंच तक न आई, शेष सभी के हल्की चोटें आईं। रमन ने जेब से रुमाल निकाल कर एएसआई के माथे पर बाँध दिया। अब एएसआई ने रमन से माफी माँगी। दूसरे दिन रमन को जमानत मिल गई।
उधर स्थानीय विधायक के पाला बदल कर सत्ता पक्ष में शामिल होने से केहर सिंह फिर विधायक के पास पहुँच गया और उन्हें झूठ परोस कर रमन की पाठशाला में मिली शराब की बरामद बोतलों की अखबार में छपी खबरों के आधार पर रमन की पाठशाला को दारू का अड्डा मानते हुए उसे बंद करने की जिला प्रशासन को हिदायत दी।
उधर एसडीएम कविता तो राधोपुर ग्राम जाकर पाठशाला का अवलोकन करना चाह रही थी लेकिन उसे पाठशाला तुरन्त बंद करने सम्बनधी जिलाधीश से आदेश प्राप्त हुए। कविता जानती थी कि इन सबके पीछे किनकी साजिश थी। उसने राजू को कहा कि वह रमन को संदेश पहुँचाने का काम करे कि वह चिंता न करें, झूठ और पाखंड अधिक दिन तक नहीं टिकते क्योंकि जीत सच्चाई की ही होती है।
उपन्यासकार ने फिर से दिखाया कि जीवन में पग-पग पर संघर्ष झेलने पड़ते हैं और यही रमन व कविता के साथ भी हो रहा था।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण अंशों की बानगी प्रस्तुत है:
- कुत्ता कितना वफादार जानवर है। रोटी का एक टुकड़ा मिलने पर भी सब्र कर लेता है। कोई अगर डंडा मार दे तो भी प्रतिशोध की भावना नहीं रखता। इंसान पर जब भी कोई बाहरी खतरा आता है, वह (कुत्ता) आगे होकर उसकी रक्षा करता है। इन्हें देखकर तो इंसान को सभ्य कहलाने में भी शर्म आनी चाहिए। (पृष्ठ 429)
- एएसआई खुश्क और रौबदार आवाज में बोला, 'रमन पुत्र जगपाल, निवासी राधोपुर कौन है?'
- 'मैं हूँ।'
- 'पढ़े-लिखे हो?'
- 'जी हाँ।'
- 'क्या काम करते हो?'
- 'अशिक्षित प्रौढ़ लोगों को पढ़ाता हूँ।'
- 'इसके अलावा कोई और भी काम करता है क्या?'
- 'जी नहीं।'
- 'क्यों झूठ बोलता है।'
- 'आप कहना क्या चाहते हो?'
- 'बतलाने में शर्म आती है क्या? शराब का धंधा कब से चालू किया है?'
- 'शराब, मैं?'
- 'और क्या मैं अंग्रेजी बोल रहा हूँ। समझ नहीं आती मेरी बात? सच-सच बतला दे, नहीं तो मेरे पास दूसरा तरीका भी है। मेरे आगे तो भूत भी नाचते हैं। बड़े-बड़े अकडू सीधे कर दिए हैं, तू तो चीज़ ही क्या है?' (पृष्ठ 431)
लेखक ने समाज का वह सच दिखाया है जिसमें झूठे राजनेता अपराधी बनकर अच्छे, भले लोगों के विरुद्ध थाने व प्रशासन को भी पंगु बना देते हैं। समझ नहीं आता, यह कैसा लोकतंत्र है?
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
29.12.202