कहानी माँ तुलसी की
चलो कहानी बताऊ तुम्हे एक,
माँ तुलसी की भक्ति,श्री हरी की लीला की,
बैकुंठ में जब गंगा ने दिया माँ लक्ष्मी को श्राप,
की धरती पर जन्मेगी वो दो रूपों के साथ,
एक रूप में वृंदा बन सहे कष्ट अपार,
और दूजे रूप में नदी बन किया जगत का उद्धार,
जब हुआ भान तो हुआ बैकुंठ में कोलाहल,
माँ लक्ष्मी को फिर श्री हरि ने किया आस्वत,
सो मॉं लक्ष्मी ले वृंदा रूप मय दानव के घर है जन्मी,
जालंधर से ब्याह हुआ जैसे निर्धारित थी करनी,
श्री हरि की परम भक्त वृंदा कहलायी,
हर भक्ति हर शक्ति से, जालंधर को अमरत्व दिलाई,
जालंधर के करनी से आहत था सारा संसार ये,
लेकिन वृंदा की सतीत्व रक्षा से,
वो बच जाए हर बार,
जब जालंधर पहुँचा माया से शिव का रूप धारण कर,
कैलाश पर्वत पर माँ पार्वती के पास,
तब माँ अपने माया योग से पहचान उसे हुई अंतर्ध्यान,
माँ पार्वती ने सारा वृतांत ये जब सुनाया श्री हरि को,
तब श्री हरि ने माया रच, रूप लिया फिर एक बार,
जालंधर का रूप धर,
किया वृंदा का सतीत्व बेकार,
सत्य जानकर श्री हरि की,
आहत हुई वो नार,
क्रोध में आकर दे दिया परमेश्वर को ही श्राप,
अपने भक्त के श्राप को श्री हरि ने भी किया स्वीकार,
शालिग्राम पाषाण बने जग के पालनहार,
ब्रम्हांड हुआ असंतुलन,मचा बैकुंठ में हाहाकार,
करने को श्राप मुक्त श्री हरि को,
हाथ जोड़ सब पैर पड़े उस नारी के,
श्री हरि को श्राप मुक्त कर,
किया उस सती ने अपना आत्मदाह,
उस वृंदा के भस्म से हुई माँ तुलसी का पौधा,
तब श्री हरि ने बताया सत्य वितान्त,
तू कोई और नही है तू लक्ष्मी का अवतार,
तेरी भक्ति निष्ठा और सतीत्व से हुआ मैं आज प्रसन्न,
हर युग तुलसी रूप में,
पूजी जाओगी तुम सदा मेरे ही संग,
दे वरदान यह तुलसी को,देव-उठनी एकादशी में,
व्याह रचाये शालिग्राम, मां तुलसी के संग ।।
~Shweta Pandey