*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*जीवंत, सरोजिनी, पहचान, अपनत्व, अथाह।
सुख-दुख में हँस मुख रहें,जीना है *जीवंत*।
कर्म सुधा का पान कर, अमर बनें श्रीमंत।।
मन *सरोजिनी* सा खिले, दिखे रूप लावण्य।
मोहक छवि अंतस बसे, प्रेमालय का पुण्य।।
सतकर्मों से ही बनें ,मानव की *पहचान*।
दुष्कर्मों के भाव से, रावण होता जान।।
जीवन में *अपनत्व* का, जिंदा रखिए भाव।
प्रियतम के दिल में बसें, डूबे कभी न नाव।।
प्रेम सिंधु में डूब कर, नैया लगती पार।
दुख-*अथाह*, जीवन-खरा, प्रभु का कर आभार।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*