हक के लिये लड़ना तो,
हर जीव मात्र का हक है।
जो अर्थ न ढूंढे मुश्किलों का,
वह जीवन ही व्यर्थ है ।
चाहे हो संसार बड़ा,
चाहे हो दीवार बड़ी,
स्वाभिमान के पथ पर,
एक समर्थ ही समर्थ है ।
सम्मान न दुजे का टूटे,
कायम अपना अभिमान रहे,
ऐसे ही लड़ने वाले को,
कहते ही पार्थ है।
संघर्ष तो जीवन का अंग है
चलता है चलता रहेगा,
जड़ रेहना किस काम का,
वह सृष्टि का अनर्थ है।
हक के लिये लड़ना तो,
हर जीव मात्र का हक है।
जो अर्थ न ढूंढे मुश्किलों का,
वह जीवन ही व्यर्थ है ।
-अम्बालिका शर्मा(ज़िन्दगी)