Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

पर्यावरणीय दोहे
***********
हर प्राणी बेचैन है, धरती हुई अधीर।
इंद्रदेव कर के कृपा, बरसा दो कुछ नीर।।

अंगारों की हो रही, धरती पर बरसात।
इंद्रदेव की हो कृपा, तभी बनेगी बात।।

हीट बेव से बढ़ रही, नयी  समस्या  नित्य।
अग्नि कांड है जो बढ़ा, और नहीं औचित्य।।

पशु-पक्षी  बेचैन हैं, बढ़ा सूर्य  का  ताप।
धरा दंश है झेलती,करते सभी प्रलाप।।

जल ही जीवन जानिए, सुंदर  है  प्रतिमान।
जल बिन जीवन है कहाँ, नहीं किसी को ज्ञान।।

जल की महिमा है बड़ी, दिखे जरूरत आज।
लगे  नहीं  इससे  बड़ा, दूजा  कोई  काज।

जल संकट  का  हो  रहा, रोज  रोज  विस्तार।
जगह जगह दिखता हमें, बढ़ता इस पर रार।।

सकल सृष्टि पोषक यही  , बूंद  बूंद  जलधार।
तन मन पोषित हो रहे,सजते जीवन सार।।

जल से होती यह धरा, हरी  भरी  खुशहाल।
नहीं बहाएँ व्यर्थ यह, रखना हमको ख्याल।।

धरती से यदि मिट गया, जल निधि का अस्तित्व।
बिन जल  क्या होगा भला, जीवन रूपी  तत्व।।

बिन जल कल होगा नहीं, आप लीजिए जान।
संरक्षण मिल सब करो, यही आज का ज्ञान।।

धरती  माँ  बेचैन  हैं, व्याकुल  हैं  सब  जीव।
प्रभु बस इतना कीजिए, बचा लीजिए नींव।।

भावी संतति के लिए, वृक्ष  लगाओ  आप।
जिससे जग जीवन बचे,घटे सूर्य का ताप।।


आज प्रकृति के चक्र का, बिगड़ गया अनुपात।
जब  से हम  करने  लगे, प्रकृति  संग  उत्पात।।

तपती धरती  के  लिए, हम  सब  जिम्मेदार।
समझो समुचित सार को, करो उचित  व्यवहार।।

कहे प्रकृति नित -नित यही, सुनो लगाकर ध्यान।
अब भी जागे यदि नहीं, व्यर्थ जाएगा ज्ञान।।

हरियाली का क्यों करें, रोज रोज संहार।
सह पाते हैं जब नहीं, उसका एक प्रहार।।

नदियों को हम मानते, निज जीवन का प्राण।
रौद्र रूप जब धारती, कर देती निष्प्राण।।

जिसने रोपा पौध है, उसका ही  सब काम।
रखवाली भी वो  करे, दे जल सुबहो शाम।।

आज उपेक्षित हो रही, नदियां सारे देश।
नहीं समझ हम पा रहे,देना क्या संदेश।।

नदियाँ नाले सह रहे,आज प्रदूषण मार।
दुश्मन बन बाधित करें, उनका जीवन सार।।

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 111949149
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now