मैं और मेरे अह्सास

सहरा के साहिल पर ये सब्ज़ शजर कहाँ से आया खोजों ज़रा l
तपती रेत को प्यार से छूते दरख़्त कैसे एक बार पूछो ज़रा ll

लहराते उछलते नाचते गाते दूर से सफ़र करते आये हुए l
मोजों की लहरों में आती है कहा से नक़्श ये सोचो ज़रा ll
शजर-व्रुक्ष
सब्ज़-हरा भरा
दरख़्त-व्रुक्ष
नक्श - स्वरुप
साहिल-किनारा
सहरा-रेगिस्तान

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111928275

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