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मैंने तुझे चाहा पर तू किसी और को चाहे ये थी मेरी किस्मत और तेरी फितरत रब करे अब तू जिसे चाहे वो भी किसी और को चाहे
मोहब्बत सिखाने की कोई किताब नहीं कब कहाँ और किस से हो जाए इसका कोई जानता हिसाब नहीं
On the eve of Father's day - Some Quotes To All Fathers हैप्पी फादर्स डे " पिता के बिना जिंदगी वीरान है, सफर तन्हा और राह सुनसान है। वही मेरी जमीं वही आसमान है, वही खुदा वही मेरा भगवान है।" Happy Father's Day “Dad: A son’s first hero, a daughter’s first love.” —Unknown "To a father growing old nothing is dearer than a daughter." - Euripides
जी रहें हैं रोज कपड़े बदल बदल कर जानते हैं कि एक दिन तो जाना ही है एक ही कपड़े में कंधे बदल बदल कर
काश वक़्त रहते सुन लेते तुम दिल की सदा तो आज इस क़दर न होते हम तुम यूँ जुदा
Today is international Environmental Day Quote - "The earth has enough for everyone's needs, but not for everyone's greed."
English is a Funny Language ? How one letter changes the entire meaning . The newly married man went on his maiden tour . He sent a message to his wife - Having a great time . Wish you were here . Message received as - Having a great time . Wish you were her .
कोई अर्थ नहीं … राष्ट्रकवि दिनकर की एक कविता नित जीवन के संघर्षो से, जब टूट चुका हो अंतर्मन तब सुख के मिले समंदर का, रह जाता कोई अर्थ नहीं। जब फसल सूख कर जल के बिन, तिनका तिनका बन गिर जाये। फिर होने वाली वर्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं। सम्बन्ध कोई भी हो लेकिन, यदि दुःख में साथ न दे अपना। फिर सुख के उन संबंधों का, रह जाता कोई अर्थ नहीं। छोटी छोटी खुशियों के क्षण, निकले जाते हैं रोज जहाँ। फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं। मन कटु वाणी से आहात हो, भीतर तक छलनी हो जाये। फिर बाद कहे प्रिय वचनो का, रह जाता कोई अर्थ नहीं। सुख साधन चाहे जितने हों, पर काया रोगों का घर हो। फिर उन अगनित सुविधाओ का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।
Someone has nicely explained बहुत ही सटीक विश्लेषण *नदी से* - पानी नहीं , रेत चाहिए *पहाड़ से* - औषधि नहीं , पत्थर चाहिए *पेड़ से* - छाया नहीं , लकड़ी चाहिए *खेत से* - अन्न नहीं , नकद फसल चाहिए *उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,* *काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़* रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर, *अब भटक रहे हैं.....!!* *सूखे कुओं में झाँकते,* *रीती नदियाँ ताकते,* *झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,* *बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम....!!!* और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं *आक्सीजन* *फिर भी सब बर्तन खाली l सोने के अंडे के लालच में , मानव ने मुर्गी मार डाली !!!,*
Heart touching Kabir's poem जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा, खेल रचाया लकड़ी का, जिसमे तेरा जनम हुआ, वो पलंग बना था लकड़ी का, माता तुम्हारी लोरी गाए, वो पलना था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, पड़ने चला जब पाठशाला में, लेखन पाठी लकड़ी का, गुरु ने जब जब डर दिखलाया, वो डंडा था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, जिसमे तेरा ब्याह रचाया, वो मंडप था लकड़ी का, जिसपे तेरी शैय्या सजाई, वो पलंग था लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, डोली पालकी और जनाजा, सबकुछ है ये लकड़ी का, जनम-मरण के इस मेले में, है सहारा लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, उड़ गया पंछी रह गई काया, बिस्तर बिछाया लकड़ी का, एक पलक में ख़ाक बनाया, ढ़ेर था सारा लकड़ी, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, मरते दम तक मिटा नहीं भैया, झगड़ा झगड़ी लकड़ी का, राम नाम की रट लगाओ तो, मिट जाए झगड़ा लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, क्या राजा क्या रंक मनुष संत, अंत सहारा लकड़ी का, कहत कबीरा सुन भई साधु, ले ले तम्बूरा लकड़ी का, जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का .
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