मैं by Dy
जब इस जीवन के बीते लम्हों को याद करता हु
इस उलझी हुई जिंदगी में और भी उलझ जाता हु मै
फिर भी जीवन को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा हु
अपनी मंजिल से भटका हुआ मुशाफिर हु मै
फिर भी समय की कठोर डगर पे चला जा रहा हु
एक कोने में अकेले बैठ कर सिसकियां लेता हु मै
फिर भी किसी का इंतजार किए जा रहा हु
अपने ख्वाबों के बोझ से दबा जा रहा हु मै
फिर भी उन ख्वाबों को लिए जिए जा रहा हु
कभी कभी अपनी परछाई से डर जाता हु मै
फिर भी इस परछाई के साथ चला जा रहा हु
इस जीवन पथ की लाखों ठोकरों से टूट चुका हु मै
फिर भी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता जा रहा हु
सिर्फ अंधेरों से भरी हुई है यह जिंदगी मेरी
फिर भी एक उम्मीद का दीपक जलाए जी रहा हु मै.