अभी हाल में ही ज्ञानवापी मामले में न्यायालय ने व्यास तहखाने में पूजा करने की अनुमति दे दी| जिसके बाद से तहखाने में पूजा अनवरत् की जा रही है| हिन्दू पक्ष इसे अपनी जीत और मुस्लिम पक्ष इसे अपनी हार समझ रहा है| परन्तु यदि इस पूरे मामले को ऐतिहासिक दृष्टि से समझा जाए, तो समझ में आएगा की ज्ञानवापी परिसर में माँ श्रृंगार गौरी का पूजन और व्यास तहखाने में पूजा/आरती तो सदियों से हो रही थी, तब भी जब देश में मुगलों का शासन था और तब भी जब अंग्रेज़ यहाँ शासक थे| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी पूजा/आरती का ये क्रम नब्बे के दशक तक तब तक चलता रहा जब तक वोट बैंक साधने वालों के निशाने पर नहीं आ गया| इसलिए यहाँ ये समझने की आवश्यकता है कि अभी ऐसा कुछ अलग या ग़लत नहीं हो गया है|
हमारे देश में सहस्त्रों वर्षों से विभिन्न धर्म/पंथ और संप्रदाय के लोग साथ रहते आये हैं| विभिन्न विचारों और विश्वासों को सम्मान देना हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा रहा है| ध्यान देने योग्य बात ये है कि वर्तमान में जो ज्ञानवापी या मथुरा के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं वो भूमि/संपत्ति से जुड़े मामले हैं, न कि धर्म से जुड़े जैसा कि दुष्प्रचारित किया जा रहा है, जिनका निर्णय उसी प्रकार कानूनी तरीके से होगा जैसे ‘अयोध्या’ का हुआ|
सबसे बड़ी बात ये कि अलग-अलग धर्मों के मानने वालों का किसी एक ही भूमि पर दावा करना सिर्फ भारत में ही नहीं होता है| ‘येरुशलम’ का ही उदाहरण ले लें, जिसपर यहूदी, इसाई और मुस्लिम तीनों ही सदियों से अपना दावा करते आये हैं| तीनों ही धर्मों में जब जिस समय जो ताक़तवर हुआ उसने ‘येरुशलम’ पर कब्ज़ा कर लिया| इस क्रम में इस पवित्र शहर को अनगिनत बार तहस-नहस किया गया, परन्तु उस ख़ूनी संघर्ष के बाद भी आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका| ऐसे में ‘अयोध्या’ एक उदाहरण है समूचे विश्व के लिए कि इस प्रकार के संवेदनशील मामलों को शांतिपूर्ण ढंग से ही सुलझाया जा सकता है|
कितना ही अच्छा हो कि हम शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की अपनी महान परंपरा को आधार बनाकर इन मामलों को स्वयं ही सुलझा लें| क्या ही सुन्दर दृश्य होगा जब ऐसी विवादित धर्मस्थल पर सभी मत/विश्वास वाले एक साथ अपने-अपने मतानुसार ख़ुदा की इबादत भी करें और ईश्वर की प्रार्थना भी|