जो बचपन था हमारा
वो था कितना प्यारा
दिन भर मुस्कुराते थे
हस्ते और खिलखिलाते थे
हाथों में चुर्री फसाके
दुनिया को नचाते थे
बस्ता उठा के स्कूल का
जिंदगी के बोझ से बच जाते थे
देकर परीक्षा बोर्ड की
हम खुद को धौंस दिखाते थे
मुहल्ले भर में घूम कर
गर्मी की छुट्टियां मनाते थे
साइकिल का पहिया घुमा के
हम मम्मी की डांट भुलाते थे
पापा से बच कर
हम छुप कर सीटी बजाते थे
बहुत खूब वक्त ने करवट खाई है
जिस बचपन में बड़े होने की दुआ मांगी थी
आज उसी वक्त ने
जिंदगी की असलियत दिखाई है
स्कूल का बस्ता हल्का था
पर भारी हैं जिम्मेदारियां
तब हस्ते हस्ते समय कटता था
अब धुंधली हो गईं हैं अपनी सब किलकारियां